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शब्द-शक्ति का एक परिचय
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है । इसी संबंध-शक्ति के घटने-बढ़ने से उसके अर्थ की हास - वृद्धि होती है । इसी संबंध के भाव अथवा प्रभाव से उसका जन्म अथवा मरण होता है अर्थात् संबंध ही शब्द की शक्ति है. संबंध ही शब्द का प्राण है । इसी से शब्दतत्त्व के जानकारों ने कहा है 'शब्दार्थसंबंधः शक्तिः' । ( शब्द और अर्थ के संबंध का नाम शक्ति है ) ।
शब्द और अर्थ के
'वृत्ति'
इस संबंध को किसी किसी प्राचार्य ने २" और किसी किसी ने 'व्यापार' नाम दिया है, इससे शब्दार्थस्वरूप के प्रकरण में सामान्यतया शब्दार्थसंबंध, शब्द-शक्ति, शब्द-वृत्ति और शब्द- व्यापार का प्रभेद से व्यवहार किया जाता है पर प्रत्येक नाम में अपना निरालापन है । शक्ति में बल और ओज है, वृत्ति में प्रश्रित रहने का भाव है, व्यापार में किया और उत्पादना की ओर झुकाव है । 'कारण' जिसके द्वारा कार्य करता है उसे 'व्यापार' कहते हैं। घड़े के बनाने में कुंभकार, मिट्टी, आदि कारण हैं । चाक का घूमना, कुंभकार का उसे घुमाना आदि व्यापार हैं। घड़ा कार्य है । इसी प्रकार शब्द से अर्थ का बोध कराने में शब्द 'कारण' होता है, अर्थ-बोध कार्य और शब्द-शक्ति कारण का व्यापार है ।
चाक
शक्ति के अन्य पर्याय
वाची शब्द
(1) मीमांसकों, वैयाकरणों तथा भालंकारिकों का यही मत है पर नैयायिक 'ईश्वर - संकेत' को शक्ति मानते हैं। देश1 – १० ल० मं० (४-१२) । (२) देखो - श्रभिधावृत्तिमातृका और प० ब० मं० ( 'सा च वृत्तिविधा' ) ।
(३) देखो - मम्मट का 'शब्द-व्यापार-विचार' – यह नाम ही 'अभिधावृत्तिमातृका के समान व्यापक है । मम्मट ने प्रायः शक्ति के अर्थ में व्यापार का प्रयोग किया है । ( देखो - काव्य - प्रकाश )
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