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तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ५०० इसलाम बहुत कुछ सुरक्षित हो गया । अक्ल की प्रविष्ठा घटी और नक्ल की मर्यादा बढ़ी। 'विला कैफ का माहात्म्य बढ़ा। 'करफुल्महजूब' के देखने से पता चलता है कि इस समय सूफियों के कई सिलसिले काम कर रहे थे। तसव्वुफ में प्राणायाम की प्रविष्ठा हो गई थी। वह दुरूह और गुह्य समझा जाता था। शिबली के पद्यों में अश्लील भाव झलकते हैं। फाराबी (मृ. १०००)ने कुरान एवं दर्शन का समन्वय कर सूफी मत का मार्ग स्वच्छ करने की चेष्टा की; पर सूफी मत को इसलाम की पक्की सनद न मिल सकी।
सूफियो की धाक जम चली थी। कतिपय सूफियों ने अपने को नबियों से अधिक पहुँचा हुमा सिद्ध किया। अबू सईद ( मृ० ११०६ ) एक इसी कड़े का सूफी था। उसके जीवनचरित से अवगत होता है कि उस समय जनता में सूफी मत का काफी सत्कार बा। एक प्रामीण ने रहस्य के उद्घाटन में उसकी पूरी सहायता की२ । सईद ने स्पष्ट कह दिया कि यद्यपि सूफी मत का मूलाधार पीर है तथापि अन्य लोगों से भी ज्ञानार्जन करना साधु है। दीच-गुरु के अतिरिक्त शिक्षा-गुरु मी मान्य है। खिरका और पीर का क्षेत्र व्यापक और उदार है। मत में स्वतंत्रता मावश्यक है। सईद समा का पका प्रतिपादक और भक्त था। उसकी
भर्य में किसी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहिए। उसका भारशः मान देना ही ठीक है।
(.) सखाम भासमानी किसानों का कायल था। हेतुवादियों के के सामने राम की शाश्वत सत्ता कायम न रह सकी। अंत में कहा गया कि बछाह सक्ष्म तत्त्व है। मलों के मंगल लिये अपना व्यक्तीकरण पाप ही करता है। इसके माविर्भाव से उसके स्वरूप का बोध हो जाता है। यही कश्फ का तात्पर्य है।
(२) Studies in Islamic Mysticism Chapter I.
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