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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
परमात्मा से प्रेम कर रहा है। वास्तव में तो वह उस परम प्रेम के पीछे पीछे चल रहा है जिसका आश्रय परमात्मा है । करखी (मृ० ८७२ ) ने जिस प्रेम और सुरा का संकेत किया था उसको यजीद ने भड़का दिया । विरही तड़प उठे और 'प्रेम पियाला ' चल पड़ा। लोग उसके मद में मस्त हो गए। यजीद ने सिद्ध कर दिया कि प्रेम की दशा में बाह्य कृत्यों का कुछ महत्त्व नहीं । उसको तृप्ति तो तब मिली जब उसके प्रियतम ने उससे 'ओ तू मैं' कहा । यजीद ने अपने को धन्य कह इस बात की घोषणा की कि उसके परिधान के नीचे परमात्मा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है । उसने 'फना' का प्रतिपादन कर सूफी मत में आर्य-संस्कारों को भर दिया और भविष्य के सूफियों के लिये अद्वैत का मार्ग खोल दिया ।
जूलनून एवं यजीद ने पीरी-मुरीदी' पर भी पूरा ध्यान दिया । जूलनून ने सच्चे शिष्य को गुरु भक्त बनने का यहाँ तक आदेश दिया कि वह परमात्मा की भी उपेक्षा कर गुरु की आज्ञा का पालन करे । यजीद ने घोषणा की कि यदि व्यक्ति-विशेष गुरु नहीं करता तो उसका इमाम शैतान होता है । इस प्रकार जूलनून और यजीद ने सूफी मत के मुख्य अंगों को परिपुष्ट कर मादन-भाव को व्यवस्थित कर दिया ।
दमिश्क, खुरासान, बगदाद प्रभृति स्थानों में जो मठ स्थापित हो गए थे उनमें सूफी मत की कसरत हो रही थी । इधर बसरा में मुहासिवी ने जिस संस्था का संचालन किया वह अपने मत के प्रचार में मग्न थी । कुरान में जिस 'जिक्र' का विधान था उसका मंतव्य कुछ भी रहा हो, सूफियों ने सामूहिक रूप से उसका संपादन किया । उनका 'सुमिरन' सलात से बहुत आगे बढ़ गया । रामभरोसा उनको इतना था कि काम-काज छोड़ सदैव सुमिरन में
(9) J. R. A. Society 1906 p. 322.
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