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तसव्वुफ अक्षवा सूफीमत का क्रमिक विकास ५०१ मेश्वर से प्राप्त होता है। उसके विषय में हम जो कुछ कल्पना करते हैं वह उसके विपरीत होता है। सर्व-समर्पण कर जो परमेश्वर को वरता है वही जन है, क्योंकि परमेश्वर भी उसी को चुने रहता है। जूलनून ने वन्द, समा, तौहीद, रसायन, तंत्र आदि पर भी प्रकाश डाल प्रेम को प्रतीक सिद्ध कर दिया। फलत: उसे मलामती' जिंदीकर की उपाधि, कुत्व की पदवी तथा कारावास का दंड मिला। ___जूलनून के अतिरिक्त और भी अनेक सूफी इस काल में इधरउधर अपनी छटा दिखा रहे थे। सूफियों की तालिका उपस्थित करने की प्रावश्यकता नहीं। केवल उन सूफियों का परिचय प्राप्त करना चाहिए जिनका सूफी मत के इतिहास में कुछ विशेष स्थान है। यह देखकर चित्त प्रसन्न होता है कि इस समय बसरा के मुहासिबी ने रिजा पर जोर दे एक सूफी-संप्रदाय का प्रवर्तन किया जो उसी के नाम से ख्यात हुमा। यजीद (मृ० ६३१) शुद्ध पारसी संतान था। उसका पिता जरथुष्ट का उपासक था। उसके योग से सूफी मत में अद्वैत का अनुष्ठान चला। उसने परमात्मा को अंतर्यामी सिद्ध किया और कण कण में उसी का विमव देखा । प्रात्म-दर्शन में उसने परमेश्वर का साक्षात्कार किया। वह जीवात्मा को परमात्मा से मिन्न नहीं समझता था। उसका प्रवचन है कि परमात्मा के प्रति जीवात्मा के प्रेम से जीवात्मा के प्रति परमात्मा का प्रेम पुराना है। जीव प्रज्ञानवश समझता है कि वह
(.) Encyclopedia of Islam p. 946.
(.)जिंदीक शब्द की भरति के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। प्रतीत होता है कि वस्तुतः इस शमका मूल भई पारसियों का घोतक था और इसका वध उनके धर्मग्रंथ जैद से पा। धीरे धीरे इस शब्द का प्रयोग स्वतंत्र विचारोगेसि होने लगा। मुसलमानों में जो स्वतंत्र विचार रखते थे और पातपात में पासमानी किताबों की दाद नहीं देते थे सुसलिम गर्ने जिंदीक काने लगे।
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