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________________ ५०० नागरी प्रचारिणी पत्रिका इब्न हंबल ( मृ० -८१२ ) मामून के कृत्यों का कट्टर विरोधी था । उसको उचित अवसर मिल गया । वह अपनी सज्जनता, श्रद्धा एवं तप के कारण जनता में पूजनीय हो गया । मातजिलों का तर्क जनता के काम का न था । उनकी बातों पर मर्मज्ञ मनीषी ही ध्यान दे सकते थे । हंबल ने उनके खंडन का प्रयत्न किया । बल तथा इसलाम के अन्य आचार्य उसको कुरान, हदीस एवं सदाचार के भीतर घेर रहे थे; इधर हृदय के व्यापारी उसको व्यापक बनाने में मग्न थे । विवाद इतना बढ़ गया था कि बुद्धि की सर्वथा अवहेलना असंभव थी । प्रेम इतना पक्व हो गया था कि उसका आस्वादन अनिवार्य था । इसी परिस्थिति में मिस्र का जूलनून प्रागे बढ़ा । राबिया ने जिस प्रेम का आनंद उठाया था जूलनून ने उसका निदर्शन किया । इल्म और मारिफ', ज्ञान और प्रज्ञान का रहस्य - दूद्घाटन कर जूलनून ने प्रेम को प्रज्ञात्मक रूप दिया । उसकी दृष्टि में मारिफत का संबंध खुदा की मुहब्बत से था । उसके पहले हफी ने परमेश्वर को हबीब कहा था, किंतु उसने उसका निरूपण नहीं किया । इसलाम में तौहीद का राग अलापा जाता था, पर इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता था कि अल्लाह की अनन्यता तभी पक्की हो सकती है जब उसके अतिरिक्त कुछ भी शेष न रहे, केवल अन्य देवता के निषेध से नहीं । मोतजिलों ने इस क्षेत्र में मार्गप्रदर्शक का काम किया था, किंतु उनका अधिकतर ध्यान कुरान की अनित्यता तक ही रह गया था । अस्तु, जूलनून ने तौहीद का प्रकाशन कर इसलाम को प्रेम की ओर अग्रसर किया और बायजीद ने अपने को धन्य कह अनुभवाद्वैत का आभास दिया । जूलनून (मृ० ८१६ ) का कहना है कि परमेश्वर का ज्ञान हमें पर ( १ ) The Idea of Personality in Sufiism p. 9 ( २ ) J. R. A. Society 1906 p. 310. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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