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________________ वसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४८६ बह सारणाही दबंग शासक था। उसके व्यापक और कठोर हस्तक्षेप ने इसलाम को सुब्ध कर दिया। अली के उपासकों को उत्कर्ष मिला। मेहदी और इमाम के विषय में जो विवाद चल रहे थे उनका निदर्शन अन्यत्र किया जायगा। यहाँ मापातत: यह विचारना है कि प्रस्तुत वातावरण में सूफीमत की क्या दशा थी। सूफीमत के अभ्युत्थान में मारूफ करखो का विशेष हाथ था। उसने तत्त्व-बोध एवं पर्थ-त्याग को तसव्वुफ की उपाधि दी। प्रेम और मधु की उद्भावना की। उसकी दृष्टि में प्रेम व्यक्ति विशेष की शिक्षा नहीं, परमेश्वर का प्रसाद है। करखी ने त्याग, वस्व एवं प्रेम का उद्बोधन कर सूफोमत के प्रजात्मक रूप का निर्देश किया। उधर सीरिया के अबू सुलेमान दारानी ने हृदय को परमेश्वर की प्रतिमा का प्रादर्श तथा देहज वस्तुओं को उसका माच्छादक कहा। उसने ज्ञान का गौरव व्याख्या से कहीं अधिक मौन में समझा । उसके विचार में जब किसी पदार्थ के अभाव में जी कलपता है तब मात्मा हंसती है; क्योंकि यही उसका वास्तविक लाभ है। करखी में चिंतन एवं दारानी में तप की प्रधानता है। सचमुच करखो में कतिपय उन नवीन तथ्यों का मान होता है जो माज भी सूफी मत में मान्य हैं और जिनका समाधान इसलाम या मुहम्मदी मत नहीं कर सकता। उनको हृदयंगम करने के लिये उन स्रोतों का पता लगाना पड़ेगा जो इसलाम को सींच रहे थे। कहना न होगा कि बसरा और बगदाद ही इस समय सूफी मत के केंद्र रहे जो मार्यसंस्कृति से सर्वथा अभिषिक्त थे। ____ मामून के निधन के उपरांत तर्क का पच दुर्बल पड़ गया। जनता भाव की भूखी होती है, तर्क से उसका पेट नहीं भरता। उसको किसी ठोस पदार्थ की मावश्यकता पड़ती है। वह सदाचार का अनुकरण करती है, ज्ञान का अनुशीलन नहीं। अहमद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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