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नागरीप्रचारिणी पत्रिका माशूक' बन चले थे। उसके श्लील एवं प्रश्लील रूप का व्यापार बढ़ रहा था। सूफी शब्द प्रयोग में आ गया था और दमिश्क में मठ भी स्थापित हो गया था।
मंसूर (मृ० ८३१) तथा हारूँ रशीद की उत्कट जिज्ञासा ने जो वातावरण उत्पन्न किया वह इसलाम की परिधि को पार कर चुका था। संस्कृतियों के संग्राम से विभेद मंगलदायक हो गया। अबू हनीफा ने धर्मशास्त्र का पालोचन किया। दमिश्क के जान ने मसीही दर्शन का अनुशीलन किया, और भक्ति-भावना पर उचित प्रकाश डाला। भारत में सिंध के मुसलमान भी मौन न रहे। मुल्तान३ विद्या तथा तसव्वुफ का केंद्र बन रहा था। कतिपय बौद्ध भी इसलाम स्वीकार कर चुके थे। सरन द्वीप में प्रागंतुक मुसलमानों पर बेकौर (वीर-कोल) का प्रभाव पड़ रहा था। अरब और भारत के संयोग से सोमरा और बेसर नामक संकर जातियाँ उत्पन्न हो चुकी थी। संक्षेप में, इसलाम चारों ओर से रस खींच रहा था । __ भाग्य या दुर्भाग्यवश मामून (मृ० ८६ ) सा दृढ़ और प्राग्रही व्यक्ति इसलाम का शासक बना । मुहम्मद साहब ने मुसलिम संघ एवं साम्राज्य के विभेद पर ध्यान नहीं दिया था। उनका प्रतिनिधि साम्राज्य तथा संघ दोनों का संचालक था। मामून संसार के उन अधिपतियों में था जो धर्म पर भी शासन करते हैं। उसने घोषित कर दिया कि कुरान की शाश्वत सत्ता अल्लाह की अनन्यता के प्रतिकूल है; जो लोग उसको नित्य मानेंगे उन्हें दंड भोगना पड़ेगा। मामून को इस घोषणा की प्रेरणा मोतजिलों की ओर से मिली थी। मामून को मतों की मीमांसा पसंद थी।
(१) शैरुल अजम च० भा० पृ० ८७ (२) The Mystics of Islam p. 3. (३) अरब और भारत के संबंध पृ० ३१२
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