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तसव्वुफ अथवा सूफीमत का कमिक विकास ४६३ इस बात का उपालंभ दिया था कि यदि वह प्रवाह के इश्क में उसी तरह मग्न रहता जिस तरह वह प्रमदा अपने प्रिय के प्रेम में मन थी तो उसे उसके नग्न अंग कदापि गोचर नहीं होते। हसन (मृ. ७८५ ) प्रेम-प्रसाद का वितरण न कर सका। वह उदार, शांत और तपस्वी था। उसकी दृष्टि में उदारता' का एक कण भी प्रार्थना तथा उपवास से सहस्र गुण अधिक महत्त्व रखता है। हसन प्रेम का पुजारी नहीं, सद्भावों का विधायक था।
प्रेम की अवहेलना अधिक दिनों तक न हो सकी। इसलाम में उसकी प्रतिमा का उदय हुमा। सूफी-साहित्य में राबिया का नाम अमर है। राबिया (मृ० ८०६) की प्रेम-प्रक्रिया पर विचार करने के पूर्व ही हमको यह मान लेना परम प्रावश्यक है कि अरबों में भी अन्य जातियों की तरह मनुष्य का विवाह किसी जिन, देव या अलख से हो जाता था। इस धारणा' का निर्वाह प्रमी तक परब में हो रहा है। राबिया एक दासी थी। वह अपने को अल्लाह की पत्नी समझती थी। उसके विषय में प्रत्तार का प्रवचन है कि जब एक प्रमदा परमेश्वर के मार्ग पर पुरुष की भांति अग्रसर होती है तब वह सी नहीं। यदि सियां उसी की तरह मक होती तो उन्हें कोन कोस सकता था! राबिया परमात्मा की प्रिय दुलहिन थी। वह कहती है"-"हे नाथ! तारे चमक रहे हैं, लोगों की प्रांखें मुंद चुकी हैं, सम्राटी ने अपने द्वार बंद कर लिए हैं, प्रत्येक प्रेमी अपनी प्रिया के साथ एकांत सेवन कर रहा है, और मैं यहाँ . . . .. -..-...-- (1) J. R. A. Society 1906 p. 305 (2) The Religious Life and attitude in Islam
___p. 143-148. (३) Rabia the Mystic p. 4. (५)
, p. 27.
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