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________________ ४६२ नागरीप्रचारिणी पत्रिका जिनको संसार की चणिक क्षणदा पसंद नहीं उनको यति-मार्ग का अनुसरण करना पड़ा। उमय्या-वंश का राज्य काम, क्रोध, लोभ आदि का राज्य था। समें धर्म का ध्यान न था। उसकी पद्धति मुहम्मद साहब से पूर्व की अरब-पद्धति थी। पारस से उसका विरोध बढ़ता ही गया। अली के प्रतिकूल प्रायशा ने जो योग दिया था, करबला के क्षेत्र में जो हत्याकांड हुए थे उनका घर दुष्परिणाम इसलाम को बराबर भोगना ही पड़ा। अली के विरोध के कारण उक्त वंश अपने पक्ष में प्रमाणों को गढ़ता और उनके पक्ष के प्रमाणों को नष्ट करता रहा। कुछ समय में इसलाम के अंतर्गत इतने विभेद उत्पन्न हो गए कि उसमें अनेक पंथ चल पड़े। सीरिया में ग्रीकदर्शन का प्रचार मसीही मत के आधार पर चल रहा था। पारस अपनी संस्कृति के घर में अलग पड़ा था। सिंध में इसलाम का डेरा पड़ गया था। संक्षेप में, इसलाम में इतने मतों का प्रवेश हो गया था कि उनको एक सूत्र में बाँध रखना अत्यंत कठिन था। वह भी उस समय जब शासक भोग-विलास के दास हो गए थे। उमय्या-वंश के शासन के पहले ही जो जिज्ञासा चल पड़ी थी वह इतनी प्रबल हो गई कि इसलाम में एक ऐसे दल का उदय हो गया जो सर्वथा बुद्धिवादी था। प्रवाद है कि उक्त दल का नामकरण बसरा के हसन ने मोतजिल किया था। सूफीमत के समीक्षक हसन का नाम नहीं भूलते। हसन उस समय की जिज्ञासा का केंद्र था। उसमें मादन-भाव का प्रसार वा न हो सका, किंतु उसके प्रभाव से संत-मत को प्रोत्साहन मिला और सूफी मत के अनेक अंग पुष्ट हो गए। प्रसिद्ध है कि एक रमणीर ने हसन को · (3) Tradition of Islam p. 47 (a) Saints of Islam p. 22 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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