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________________ तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४८८ अनुयायियों ने उनके भावों पर ध्यान नहीं दिया। उनके सामने सेनानी मुहम्मद का वह रूप नाच रहा था जो इसलाम के प्रसार के लिये संग्राम में निरत था, संहार में मम था, संग्रह में लगा था, वंस और धावा को ध्येय समझता था। चट उन्होंने उसी का तांडव प्रारंभ किया। मुहम्मद के एकदेशीय संदेश को, अरबी कुरान और अरवी दीक्षा के आधार पर विश्वव्यापक बनाने की उप्र पेष्टा प्रारंभ हुई। भाग्यवश उमर (१० ७००) सरीखा पटु, विचक्षण, त्यागी, कुशल वीर नीतिन मिला। उमर की छत्रछाया में इसलाम को जो गौरव मिला था वह सहसा नष्ट हो गया । उसमान उसकी रक्षा न कर सके। उमर के प्रभुत्व से मिस्र तथा पारस जैसे सभ्य और संपन्न देश इसलाम के शासन में आ गए। शाम भी अछूता न बचा। इसलाम को सँभलकर काम करना पड़ा। इसलाम विकट परिस्थिति में पड़ गया। एक ओर तो जो लोग स्वर्ग के लोभ अथवा स्वर्ण की लालसा से लड़ रहे थे उन्हें संभोग की वासना सताने लगी, दूसरी ओर जो भद्र मुसलिम बन गए थे उनकी प्रतिमा इसलाम का मर्म समझना चाहती थी। बुद्धि विमेद की जननी और विज्ञान की माता है। लोभवश इसलाम में प्ररव और परवेवर का प्रश्न उठा। शासन और साम्राज्य के लिये मुसलिम प्रापस में भिड़ गए। जिज्ञासा ने इसलाम, ईमान एवं दीन का प्रश्न खड़ा किया। मुहम्मद साहब ने इसलाम पर विशेष जोर दिया था, पर ईमान और दीन के संबंध में प्रायः वे मौन ही रह गए थे। कम से कम कुरान में इनका निरूपण नहीं किया गया था। इसलाम को यहूदी, मसीही, पारसी भादि अनेक मते को पचाना था। उसमें धर्म-जिज्ञासा उत्पन्न हुई। इसलाम के सामने (v) The Muslim Creed p. 3 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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