________________
तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४८७ के लिये कुरान के पदों का अभीष्ट अर्थ लगा मुहम्मद साहब को 'महबूब' और 'नूर' बनाना पड़ा। मुहम्मद साहब के सत्कार से उनके बहुत से अंतराय दूर हुए और सूफी इसलामी जामे में अपने मत का प्रचार करने लगे। धीरे धीरे इसलाम में उनको शाश्वत पद मिल गया और तसव्वुफ इसलाम का' दर्शन हो गया।
इसलाम की दीक्षा में यदि अल्लाह अनन्य है तो मुहम्मद उसका अंतिम दूत । मुहम्मद साहब ने अपना नाम जो अल्लाह के साथ जोड़ दिया उससे इसलाम कर और संकीर्ण हो गया । बेचारे सूफियों को भी इसलाम की रक्षा के लिये मुहम्मद साहब को बहुत कुछ सिद्ध करना पड़ा। मुसलिम संसार में अल्लाह और कुरान के प्रनंतर मुहम्मद और हदीस का स्थान है। वास्तव में मुहम्मद साहब ने जो कुछ आवेश की दशा में कहा वह कुरान और जो कुछ होश की हालत में कहा वह हदीस के नाम से ख्यात हुप्रा। आवेश देवात्मक होने के कारण प्रधान
और हदीस सामान्य होने के कारण गौण है। हदीस के साथ ही सुना का भी महत्त्व इसलाम को मान्य है। मुन्ना में रसूल के क्रिया-कलापो का विधान है। इसलाम में विषि-निषेध, निमित्तनित्य, काम्य प्रादि कर्मों की मीमांसा सुना के प्राधार पर होती रही। इस प्रकार संतो के सामने कुरान के साथ ही हदीस एवं पेश किया वे तो बानते हैं, मुझे नहीं जानते। ये खोग (सूफी) मुझे जानते है, तुम्हें नहीं जानतें"। जायसी-ग्रंथावत्नी, भूमिका पु. १५८।
(.) इसलाम का वास्तव में कोई निजी दर्शन नहीं है। शामी मतों में पासमानी किताबों पर इतना जोर दिया गया कि इनमें दर्शन के लिये जगह न रही और बुद्धि पाप की जननी मानी गई। पर मार्यों के प्रभाव से इसवाम में चिंतन प्रारंभ हो गया। मुसलिम फिलासफ को यूनान का प्रसाद समयते । तसम्युफ से ही मुसलिम मनीषियों को संतोष हुमा और उसी में इसबाम की रा भी दिखाई पड़ी।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com