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________________ ४८६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका थे और मसजिद के दान से अपना जीवन-निर्वाह करते थे। कुछ भी हो, इतना तो स्पष्ट है कि हीरा की गुहा में मुहम्मद साहब का जो दर्शन हमें मिला वह सर्वथा सूफियाना था। कुरान उसी अभ्यास का फल था। समझ में नहीं आता कि मुहम्मद साहब ने उस मार्ग की उचित व्यवस्था क्यों नहीं की. जिसके प्रसाद से उनको अल्लाह के अंतिम और प्रिय रसूल होने की सनद मिली । कुरान में अल्लाह के जिस स्वरूप का परिचय दिया गया उसकी जिस शक्ति, अनुकंपा और क्षमा का प्रस्ताव किया गया, उसका समीक्षण अन्यत्र किया जायगा। यहाँ तो केवल यह कहना है कि कुरान में कतिपय स्थल इस ढंग के अवश्य हैं जिनके आधार पर शब्द-शक्ति की कृपा से सूफीमत का प्रतिपादन इसलाम के अंतर्गत भली भांति किया जा सकता है। भक्ति में, चाहे उसकी भावना किसी प्रकार की क्यों न हो, उपास्य की सन्निकटता अनिवार्य होती है। प्रपन्न मुहम्मद जब कभी सेना, शासन, संग्राम आदि से शिथिल हो किसी चिंतन के उपरांत प्रल्लाह की शरण लेते और उसके आलोक का आभास देते तब उसमें कुछ न कुछ वह झलक आ ही जाती थी, जो न जाने कितने दिनों से अरब के पथिकों को गुमराह होने से बचाती, मार्ग दिखाती और त्यागी यतियों की पर्णकुटी की शोभा बढ़ाती थी। अल्लाह की व्यक्तिगत सत्ता का स्वर्गस्थ विधान संग्राम में सहायक तो था किंतु दलित हृदयों का उद्धार, उनका परित: परिमार्जन, उसका सामीप्य ही कर सकता था। यदि कुरान के अवतरण का विधान-अल्लाह, जिबरील, मुहम्मद, जनता-बना रहता तो सूफी महामिलन का स्वप्न न देख पाते। सूफियों को तो प्रियतम के गले का हार भी दुःखद था, फिर भला वे किसी मध्यस्थ को कब तक कबूल करते । निदान उनको अपने मत के प्रतिपादन (१) "खुदा उस वक (कयामत के दिन) कहेगा-ऐ मुहम्मद ! जिनको तुमने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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