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नागरीप्रचारिणो पत्रिका शिवदयालजी का जन्म सं० १८८५ में आगरे के एक महाजन कुल में हुआ था। इनके संबंध में कहा जाता है कि ये बाल्यकाल १६. ( स्वामीजी महाराज ) से ही मननशील और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के
शिवदयालजी थे। कई दिन तक ये एकांत में ध्यानमग्न रहा करते थे। इनसे जो संप्रदाय चला वह राधास्वामी मत कहलाता है। अपने संप्रदाय में ये स्वामीजी महाराज कहलाते हैं और सर्व. शक्तिमान राधास्वामी के अवतार समझे जाते हैं । यद्यपि कहा जाता है कि उन्होंने किसी गुरु से दीक्षा नहीं ली फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके ऊपर तुलसी साहब का पूर्ण प्रभाव पड़ा था। कहते हैं कि उनके जन्म के पहले ही तुलसी साहब ने उनके अवतार की भविष्यवाणी कर दी थी। तुलसी साहब की मृत्यु के उपरांत उनके प्रायः सब शिष्य शिवदयालजी के पास खिंच आए। राधास्वामी संप्रदाय की प्रमुख शाखाएँ आजकल आगरा, इलाहाबाद और काशी प्रादि स्थानों में हैं। संप्रदाय बहुत सुंदर रूप से गठित है और बड़े उपयोगी कार्य कर रहा है। दयालबाग आगरे में उनका विद्यालय एक अत्यंत उपयोगी संस्था है जो सांप्रदायिक ही नहीं राष्ट्रीय दृष्टि से भी महत्त्व पूर्ण है। स्वामीजी महाराज के शिष्य रायबहादुर शालिग्राम ने, जो इलाहाबाद में पोस्ट मास्टर-जनरल थे और संप्रदाय में हुजूर साहब के नाम से प्रसिद्ध हैं, संप्रदाय को दृढ़ भित्ति पर रखने के लिये बहुत काम किया। परंतु इस मत के सबसे बड़े व्याख्याता पं० ब्रह्मशंकर मिश्र ( महाराज साहब ) हुए हैं जिन्होंने अँगरेज़ो में ए डिस्कोर्स प्रॉन राधास्वामी सेक्ट नामक ग्रंथ लिखा है। हुजूर साहब ने भी अँगरेजी में राधास्वामी मत-प्रकाश नामक पुस्तक लिखी । स्वामीजी महाराज की प्रधान पद्य-रचना सारवचन है। इसका गद्य सार भी मिलता है। हुजूर साहब का प्रधान ग्रंथ प्रेमबानी है। जगत प्रकाश नामक उनका एक गद्य ग्रंथ भी है।
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