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________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय तीसरा अध्याय निर्गुण संप्रदाय के दार्शनिक सिद्धांत जिन परिस्थितियों ने इस नवीन निर्गुण पंथ को जन्म दिया था, एकेश्वरवाद उनकी सबसे बड़ी आवश्यकता थी । वेदांत के अद्वैतवादी सिद्धांतों को मानने पर भी हिंदू बहु-देव-वाद में बुरी तरह फँसे हुए थे, जिससे १. एकेश्वर वे एक अल्लाह को माननेवाले मुसलमानों की घृणा के भाजन हो रहे थे । एक अल्लाह को माननेवाले मुसलमान भी स्वयं एक प्रकार से बहु-देव-वादी हो रहे थे, क्योंकि काफिरों के लिये वे अपने अल्लाह की संरक्षा का विस्तार नहीं देख सकते थे, जिससे प्रकारांतर से काफिर का परमेश्वर अल्लाह से अलग सिद्ध हुआ । अतएव निर्गुणवादियों ने हिंदू और मुसलमान दोनों को एकेश्वरवाद का संदेश सुनाया' और बहु-देव-वाद का घोर विरोध किया । चरनदास चाहते हैं कि सिर टूटकर पृथ्वी पर भले ही लोटने लगे, मृत्यु भले ही आ उपस्थित हो, परंतु राम के सिवा किसी अन्य ( १ ) एक एक जिनि जणियाँ, तिनहीं सच पाया । प्रेम प्रीति ल्यालीन मन, ते बहुरि न आया ॥ ६५ - क० ग्रं०, पृ० १४६, १८१ । केवल नाम जपहु रे प्रानी परहु एक की सरना । - वही, पृ० २६८, ११४ । और देवी देवता उपासना अनेक करै वन की हौस कैसे, श्राकडेोड़े जात है । सुंदर कहत एक रवि के प्रकास विन जेंगना की जोति, कहा रजनी विज्ञात है ? -सं० बा० सं०, भाग २, पृ० १२३ । www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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