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________________ ६६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका देवता के लिये मेरा सिर न झुके। निर्गुणो एकेश्वर के भक्त को आलंकारिक भाषा में पतिव्रता नारी कहते हैं। कबीर की दृष्टि में बहु-देव-वादो उस व्यभिचारिणो खो के समान है जो अपने पति को छोड़कर जारों पर आसक्त रहती है; अथवा उस गणिका-पुत्र के समान जो इस बात को नहीं जानता कि उसका वास्तविक पिता कौन है३ । नानक जिस समय-१ ॐ ४ सतिनामु करता पुरुख विरभा निरवैर अकालमूरति अजूनि सैभं (गुरु प्रसादि ) की भक्ति का प्रचार कर रहे थे उस समय उनका प्रधान लक्ष्य बहु-देव-वाद का खंडन ही था। हिंदुओं को संबोधित कर कबीर ने कहा था एक जनम के कारणे कत पूजो देव सहेसो रे । काहे न पूजो रामजी जाके भक्त महेसो रे ॥ (१) यह सिर नवे त राम , नाहीं गिरियो टूट । आन देव नहि परसिए, यह तन जावो छूट ॥ -सं० बा० सं० १, पृ० १४७ । (२) नारि कहावै पीव की, रहै और सँग सोय । जार सदा मन मैं बसै, खसम खुसी क्यों होय ॥ -वही, पृ० १८ (३) राम पियारा छाड़ि कर, करै धान को जाप । वेस्वा केरा पूत ज्यूँ, कहै कौन सू बाप ।। -क. ग्रं॰, पृ. ६, २२। (४) ॐ के प्लुत होने से कभी कभी 'पोश्म्' इस तरह भी लिखा जाता है। इस तीन के अंक को कोई इस बात का सूचक भी मानते हैं कि ॐ श्र+उ+म्-इन तीन अवरों के योग से बना है । इन बातों से कोई यह न समझ बैठे कि प्रणव का त्रिविध स्वरूप है अथवा वह खंडित हो सकता है, इस भम से नानक ने 'ओ ३ म्' की जगह '१ ॐ' कर दिया है। (५) सहेसो =सहस्रों। (६) क. ग्रं॰, पृ० १२६, १२७ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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