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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय मुसलमानों को
दुइ जगदीस कहाँ ते पाए कहु कोने भरमाया। अल्ला, राम, करीमा, केसो, हरि हजरत नाम धराया ॥ गहना एक कनक ते गहना तामैं भाव न दूजा ।
कहन सुनन को दुइ करि थापे, एक नमाज एक पूजा' ॥ तथा दोनों को
कहै कबीर एक राम जपहु रे हिंदू तुरक न कोई ॥
हिंदू तुरक का कर्ता एकै ता गति लखी न जाई ॥ निर्गुण संतों ने बार बार इस बात पर जोर दिया है कि जगत का कर्ता-धर्ता एक ही परमात्मा है जिसको हिंदू और मुसलमान दोनों सिर नवाते हैं। ___ यहाँ पर यह बता देना आवश्यक है कि हिंदू बहुदेववाद वैसा नहीं है जैसा बाहर बाहर देखने से प्रकट हो सकता है। हिंदुओं के प्रत्येक देवता का द्वैध रूप है-एक व्यावहारिक और दूसरा पारमार्थिक अथवा तात्त्विक । व्यावहारिक रूप में वह परब्रह्म परमात्मा के किसी पक्षविशेष का प्रतिनिधि है जिसके द्वारा याचक भक्त अपनी याचना की पूर्ति की आशा करता है। ब्रह्मा विश्व का सृजन करता है, विष्णु पालन और रुद्र उसका उद्देश्य पूर्ण हो जाने पर संहार; लक्ष्मी धनधान्य की अधिष्ठात्री है, सरस्वतो विद्या की, चंडी वह प्रचंड दिव्य शक्ति है जो अत्याचारी राक्षसों का विध्वंस करती है और युद्ध-यात्रा में जाने के पहले जिसका मावाहन किया जाता है इत्यादि। परंतु परमार्थरूप में प्रत्येक देवता पूर्ण परब्रह्म परमात्मा है और व्यावहारिक पक्ष में अन्य सब देवता उसके
(१)क० श०, १, पृ. ७५ । (२) क. ग्रं॰, पृ० १०६, १७ । (३) वही, १०६, २८ ।
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