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________________ नागरीप्रचारिणो पत्रिका अधीनस्थ हैं । इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर मैक्समूलर ने भारतीय देववाद को पैलीथीज्म ( बहुदेववाद ) न कहकर होनेाथीज्म कहा है। हिंदू पूजा-विधान ( यहाँ पर मेरा अभिप्राय दर्शन से नहीं कर्मकांड से है ) को चाहे कोई किसी नाम से पुकारे उसके मूल में निश्चय ही एकेश्वर-भावना है। वैदिक काल के ऋषि भी जिन प्राकृतिक शक्तियों के विभव का गान किया करते थे, उनमें एक परमात्मा का दर्शन करते थे, उन्होंने घोषणा की कि बुद्धिमान लोग एक ही सत्तत्त्व को अग्नि, इंद्र ( जल का स्वामी ), मातरिश्वान ( वायु का अधिपति) प्रादि नामों से पुकारते हैं । प्रतएव जो अलग अलग देवता समझे जाते हैं, वे वस्तुत: अलग देवता न होकर एक ही परमात्मा के अलग अलग रूप हैं । इसी बात को ध्यान में रखकर स्पेन-निवासी अरब-वंशी काजी साईद ने, जिसकी मृत्यु सं० ११२७ में हुई थी, लिखा था कि "हिंदुओं का ईश्वरीय ज्ञान ईश्वर की एकता के सिद्धांत से पवित्र है २ ।" डाक्टर प्रियर्सन को भी यह बात माननी पड़ी है कि हिंदुओं की मूर्तिपूजा और बहुदेववाद हिंदू धर्म के गहन सिद्धांतों के बाहरी आवरण मात्र १३ । यदि हिंदू पूजा-विधान के इस मूल तत्व की अवहेलना न की गई होती तो कबीर उसका विरोध न करते । क्योंकि वे जानते थे कि एक परमात्मा के अनेक नाम रख देने से वह एक अनेक नहीं हो जाता। उन्होंने स्वयं ही कहा था "अपरंपार का नाउँ अनंत ४ ।” परंतु तथ्य तो यह है कि जिस समय पश्चिमोत्तर के द्वार से देश में (१) एकं सद्विप्रा बहुधा वदंत्यग्निमिन्द्रं मातरिश्वानमाहुः । —ऋक् २, ३, २३, ६ । (२) तबकातुल उमम ( बैरूत संस्करण ), पृ० १५; अरब और भारत के संबंध, पृ० १७४ । ( ३ ) क० ब०, प्रस्तावना, पृ० ३६ । (४) क०प्र०, पृ० १६६, ३२७ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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