SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय मुसलमानों की सैन्य-धारा निरंतर उमड़ी चली आ रही थी उस समय उन्होंने हिंदुओं को घोर बहुदेववादी पाया जो हिंदुओं को उनकी घृणा का भाजन बनाने का एक कारण हुआ। परंतु अल्लाह के इन प्यारों को स्वप्न में भी विचार न हुमा कि जिस बहुदेववाद से हम इतनी घृणा कर रहे हैं, हमारा मूर्ति-भंजक एकेश्वरवाद उससे भिन्न कोटि का नहीं है। विश्व का कर्ता-धर्ता चाहे एक देवता हो अथवा अनेक, इससे परिस्थिति में कोई विशेष अंतर नहीं पाता। सामी एकेश्वरवाद और विकृत हिंदू बहुदेववाद एक ही देववाद के दो विभिन्न रूप हैं। किंतु निर्गुण संतो ने परमात्मा संबंधी जिस विचार-श्रृंखला का प्रसार किया वह इनसे तत्त्वतः भिन्न थी। उसका मूर्ति-पूजा का विरोधी होना, इस बात का प्रमाण नहीं कि वह और मुसलमानी एकेश्वरवाद एक ही कोटि के हैं। दोनों में प्राकाशपाताल का अंतर है। मुसलमानों के ईश्वर-संबंधी विश्वास का निचोड़ ला इलाहे इल्लिल्लाह मुहम्मदरसूलिल्लाह में आ जाता है, जो कुरान के दो सूरों के अंशों के मेल से बना है। इसका अर्थ है, अल्लाह का कोई अल्लाह नहीं, वह एक मात्र परमेश्वर है और मुहम्मद उसका रसूल अर्थात् पैगंबर या दूत है। इस पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार गिबन ने कहा था कि जिस धर्म का मुहम्मद ने अपने कुल और राष्ट्र के लोगों में प्रचार किया था वह एक सनातन सत्य और एक आवश्यक कल्पना (ऐन एटर्नल ट्रथ ऐंड ए नेसेसरी फिक्शन) के योग से बना है।। निर्गुण पंथ के प्रवर्तक कबीर ने इस कल्पना का तो सर्वथा निराकरण कर दिया और वह सत्य के मार्ग पर बहुत आगे बढ़ गया। (१) रोमन इंपायर, भाग ६, पृ. २२२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy