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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय
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पहले हो चुकी थी परंतु जनता उसके लिये तैयार नहीं थो । इसलिये उसके विरुद्ध प्रदोलन उठता हुआ देखकर उन्होंने उसे दबा दिया और सगुण रामायण लिखकर प्रकाशित की । इस क्षेपक-कार को इस बात का ज्ञान था कि उसके जाल की ऐतिहासिक जाँच होगी । उसने तुलसी साहब से पलकराम नानकपंथी के साथ नानक के समय का, ऐतिहासिक ढंग से, विवेचन कराया
और इसका भी प्रयत्न किया है कि मेरी गढ़ंत भी ऐतिहासिक जाँच में ठीक उतर जाय । किंतु उसे इस बात का ध्यान न हुआ कि मैं अपने गुरु की प्रशंसा करने के बदले निंदा कर रहा हूँ । तुलसी साहब सरीखे मनुष्य को भी उसने ऐसे निर्बल चरित्रवाला बना दिया है जिसने लोक में अप्रिय होने के डर से सत्य को छिपा दिया और ऐसी बातों का प्रचार किया जिन पर उसको स्वयं विश्वास न था । वह इस बात को भी भूल गया कि स्वयं घटरामायण ही में अन्यत्र तुलसी साहब ने स्पष्ट शब्दों में सगुण रामायण का रचयिता होना अस्वीकार किया है' । इसके अतिरिक्त इस क्षेपककार ने एक ऐसा घोर अपराध किया है जिसका मार्जन नहीं । उसने रामचरितमानस को जिसने समस्त मानव जाति के हृदय
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में अपने लिये जगह कर ली है, एक धोखे की कृति बना दिया है । तुलसीदास के साथ उनके नाम-सादृश्य से ही उनको अपनी पुस्तक का नाम घटरामायण रखने की सूझी होगी परंतु इससे आगे बढ़कर वे लोगों को यह धोखा नहीं देना चाहते थे कि मानस भी मेरी ही रचना है | उसका तो बल्कि उन्होंने खंडन किया है
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घटरामायण के अतिरिक्त तुलसी साहब ने शब्दावली, पद्मसागर और रत्नसागर इन तीन ग्रंथों की रचना की ।
(१) राम रावन जुद्ध लड़ाई । सो मैं नहि कीन बनाई ।
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- 'घटरामायण', भाग २, पृ० १२४ ।
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