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________________ हिंदी काव्य में निर्गण संप्रदाय ६१ जाते हैं। इनमें से सात हजार कबीर साहब के कहे जाते हैं। परंतु इनका यह ग्रंथ अभी प्रकाशित नहीं हुआ है, उसका केवल एक बहुत संक्षिप्त संकलित संस्करण, संतबानी पुस्तकमाला में, प्रकाशित हुआ है। इधर-उधर साधु-संतों की रचनाओं में उसमें से और भी अवतरण मिल जाते हैं। संतबानी-संपादक के अनुसार इनका समय संवत् १७७४ से १८३५ तक है। इनका दावा है कि स्वयं कबीर साहब ने मुझे संत-मत में दीक्षित किया है। संतबानी माला के संपादक ने तुलसी साहब की एक जीवनी के आधार पर कहा है कि वे रघुनाथराव के जेठे लड़के और बाजीराव ___ द्वितीय के बड़े भाई थे। संसार में मिथ्या के भार १८. तुलसी साहब ' का वहन उन्हें अभीष्ट नहीं था। इसलिये राजसिंहासन को अपने छोटे भाई के लिये छोड़कर वे आध्यात्मिक राज्य को अधिकृत करने के लिये घर से निकल पड़े। रमते-रमाते अंत में ये हाथरस में बस गए। जब अँगरेजों के कारण बाजीराव द्वितीय बिटूर में आकर बस गए तब, कहते हैं कि, तुलसी साहब एक बार उनसे मिले थे। इनका घर का नाम श्यामराव बतलाया जाता है, परंतु इतिहास रघुनाथराव के सबसे ज्येष्ठ पुत्र को अमृतराव के नाम से पहिचानता है। परंतु हो सकता है कि उसके दो नाम रहे हैं।। तुलसी साहब अक्खड़ स्वभाव के प्रादमी थे, पर थे पहुँचे हुए संत। कहते हैं, एक बार उनके एक धनी श्रद्धालु ने अपने घर में उनकी बड़ी प्राव-भगत की। भोजन करते समय उसने उनके सामने संतान के अभाव का दुखड़ा गाया और पुत्र के लिये वरदान माँगा। तुलसी साहब बिगड़कर बोले कि "तुम्हें यदि पुत्र की चाह है तो अपने सगुण परमात्मा से माँगो। मेरे भक्त के यदि कोई बच्चा हो तो मैं तो उसे भी ले लूँ" और यह कहकर बिना भोजन समाप्त किए चल दिए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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