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________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय ८५ से श्रागता लाया ही, साथ हो उनको पिलाने के लिये दूध भी ले प्राया । थोड़ी ही देर के सत्संग से वह साधुओं को बहुत प्रिय हो गया और उसके हृदय में भी वैराग्य जाग गया । परंतु साधुओं ने उसे इस छोटी उमर में शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया; किंतु अपने सत्संग और स्नेह की स्मृति के रूप में उन्होंने उसे एक एक धागा दे दिया, एक ने काला और दूसरे ने सफेद । जगजीवन के अनुयायी इस घटना की स्मृति में अपने दाहिने हाथ की कलाई पर एक काला और एक सफेद धागा बाँधते हैं जो 'दु' कहलाता है । भीखापंथी इन्हें गुलाल साहब की परंपरा में मानते हैं परंतु अपने संप्रदाय में ये विश्वेश्वर पुरी के चेले माने जाते हैं इन्होंने शुद्ध अवधी में रचना की । इनकी शब्दावली प्रकाशित हो चुकी है। ज्ञानप्रकाश, महाप्रलय और प्रथम ग्रंथ भी इनकी रचनाएँ हैं, जो अब तक प्रकाश में नहीं आई हैं । इनके चलाए सत्तनामी संप्रदाय पर जनसाधारण के धर्म का विशेष प्रभाव पड़ा है । यह प्रभाव उनके शिष्य दूलमदास में अधिकता से दिखाई पड़ता है । दूलमदास ने हनुमानजी, गंगा और देवी भगवती की प्रार्थना गाई है । दूलमदासजी की बानी भी प्रकाश में आ चुकी है। उनकी कविता में शक्ति और प्रवाह दोनों विद्यमान हैं I पलटूदास जाति के कॉंदू बनिया थे । इनका जन्म फैजाबाद जिले के नागपुर ( जलालपुर ) में हुआ था । वे अयोध्या में रहते थे । इन्होंने गुलाल के शिष्य गोविंद से दीक्षा ली थी। भजनावली में इनका परिचय इस प्रकार दिया गया है सार ॥ नंगा जलालपुर जन्म भयो है, बसे अवध के खोर । कहें पलटू प्रसाद हो, भयो जक में चारि चरन को मेटिके, भक्ति चलाई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ११. पलटूदास — मूल | www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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