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नागरीप्रचारिणी पत्रिका अमीघुट की रचना की। बुल्ला जाति के कुनबो थे। उनका असल नाम बुलाकीराम था। फैजाबाद जिले के बसहरी ताल्लुके में गुलाल नामक एक राजपूत जमींदार के यहाँ वे हल जोतते थे। बुल्ला कभी कभी काम करते करते ध्यानस्थ हो जाते थे। काम से उनका ध्यान खिंच जाता था। गुलाल उसे कामचोर समझकर उसके ऊपर खूब डाट-उपट रखता था, पीटने में भी कसर नहीं करता था, यहाँ तक कि एक बार तो उसने उसे लात भी चखा दी। परंतु धीरे धीरे गुलाल को अपनी भूल मालुम होने लगी। जब उसे अनुभव हो गया कि बुल्ला एक साधारण हरवाहा नहीं है, बल्कि पहुँचा हुआ साधु है तब वह उसका शिष्य बन गया। बुल्ला और गुलाल दोनों ने अपने हृदय के भावों को सीधे सादे अनलंकृत पद्यों में प्रकट किया है। दोनों का निवासस्थान भरकुड़ा गाँव था, जो जिला गाजीपुर में है। अवस्था में दोनों प्राय: एक समान रहे होंगे और केशवदास के समकालीन । प्रसिद्ध संत पलटू और उनके समसामयिक भीखा भी यारी की ही शिष्यपरंपरा में थे; क्योंकि वे गुलाल के शिष्य गोविंद के शिष्य थे।
दोनों जगजीवनदास और उनके चलाए हुए दोनों सत्तनामी संप्रदायों में कुछ अंतर समझना चाहिए। पहले जगजीवनदास
____ का दादूदयाल के साथ उल्लेख हो चुका है। १०. जगजीवनदास द्वितीय
वह दादूदयाल का शिष्य था। पिछले सत्तनामी संप्रदाय के संस्थापक को जगजीवनदास द्वितीय कहना चाहिए। यह जाति का क्षत्रिय था। जब वह दो हो वर्ष का रहा होगा, तभी औरङ्गजेब ने पहले सत्तनामी संप्रदाय को ध्वंस कर डाला था। जगजीवन का पिता किसान था। एक दिन जब जग्गा गोरू चरा रहा था तो बुल्ला और गोविंद दो साधु उस रास्ते से पाए। - उन्होंने जग्गा से तंबाकू पीने के लिये प्राग मंगवाई। जग्गा गांव
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