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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय खूब प्रयास किया। सत्य की खोज में वे पहले मुसलमानी तीर्थस्थानों में गए फिर हिंदू तीर्थस्थानों में। प्रत्येक पूर्णिमा को वे बड़ी भक्ति-भावना के साथ सरस्वती में स्नान किया करते थे परंतु सब व्यर्थ । अंत में उस दिव्य ज्योति को उन्होंने अपने हृदय में ही, पूर्ण प्रकाश के साथ, चमकते हुए देखा। उन्हें अनुभव हुआ कि इस ज्योति का जगमग प्रकाश हमेशा हमारे हृदय को प्रकाशमान किए रहता है। उसके दर्शन के लिये केवल दृष्टि को अंतर्मुख कर देने की आवश्यकता होती है। ___ अपने हृदय के उद्गारों को व्यक्त करते हुए उन्होंने बहुत सुंदर कुंडलिया छंद लिखे हैं। कहा जाता है कि उन्होंने सवा लाख कुंडलिया लिखी थी। प्रसिद्ध इतिहासज्ञ महामहोपाध्याय पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा के पास उनकी बानी का एक संग्रह है। परंतु ओझाजी कहते हैं कि इस संग्रह में उनकी बानो की संख्या इसके शतांश भी नहीं है। किंतु इधर-उघर संतों के संग्रहों में इनकी कुछ वाणी मिलती है। इनकी कविता सादी, भाषा सरल तथा भाव सीधे हैं। इनका समय विक्रम की अठारहवीं शताब्दी का मध्य है।
यारी साहब एक मुसलमान संत थे। इनका समय संवत् १७४३ से १७८० तक माना जाता है। इनकी रत्नावली बड़े भव्य भावों ६. यारो साहब और से पूर्ण है। आध्यात्मिक संयोग और वियोग
उनकी परंपरा की इनकी कविता में बड़ी मधुर व्यंजना हुई है। इनके पद्यों में साहित्यिक चमक दमक का प्रभाव होने पर भी लोच काफी रहता है। सूफी शाह, हस्तमुहम्मदशाह, बुल्ला और केशवदास इनके शिष्यों में से थे। बुल्ला साहब और केशवदास की रचनाएं प्रकाश में आई हैं। केशवदास का समय सं० १७४७ से १८२२ तक है। वे जाति के वैश्य थे। उन्होंने
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