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________________ ८२ . नागरीप्रचारिणी पत्रिका इसके जवाब में मलूकदास ने कहा है इधर उधर जेई फिरै तेई पीसे जाय । जे मलूक कीली लगैं, तिनको भय कछु नाहि ॥ एक जगह कबीर ने कहा है कि कोयला सौ मन साबुन से धोने पर भी सफेद नहीं होता। किसी ने इसके जवाब में कहा है कि अगर कोयला जलने के लिये तैयार हो जाय तो उसके सफेद होने में कोई अड़चन नहीं। हो सकता है कि यह भी मलूक का ही हो। मलूकदास विवाहित थे। किंतु पहले ही प्रसव में उनकी स्त्री एक कन्या जनकर मर गई। उनके बाद कड़ा में उनके भतीजे रामसनेही गद्दी पर बैठे। तदुपरांत कृष्णसनेही, कान्हग्वाल, ठाकुरदास, गोपालदास, कुंजविहारीदास, रामसेवक, शिवप्रसाद, गंगाप्रसाद तथा अयोध्याप्रसाद, यह परंपरा रही। आजकल मलूक के सभी वंशज महंत कहलाते हैं, परंतु गद्दी अयोध्याप्रसादजी ही में समाप्त समझी जाती है। प्रयाग में इनकी गही का संस्थापक दयालदास कायस्थ था, इस्फ़हाबाद में हृदयराम, लखनऊ में गोमतीदास, मुल्तान में मोहनदास, सीताकोयल में पूरनदास और काबुल में रामदास। इनके संप्रदाय का एक स्थान और 'राम जी का मंदिर' वृंदावन में केशी घाट पर भी है। इनके संप्रदाय में गृहस्थजीवन निषिद्ध नहीं है परंतु गद्दी मिलने पर महंत को ब्रह्मचर्यमय जीवन बिताना पड़ता है, यद्यपि रहता वह अपने बाल-बच्चों ही में है। दीन दरवेश पाटन के रहनेवाले सूफी साधु थे जिन्होंने सब तरफ से निराश होकर अपने हृदय की शांति के लिये निर्गुण भक्ति _ की लहर में डुबकी लगाई। वे पढ़े-लिखे ८. दीन दरवेश बहुत नहीं थे। फारसी का उनको कुछ मोटा सा ज्ञान था। किंतु सत्य की खोज में वे लगन के साथ लगे और अपनी प्राध्यात्मिक शक्तियों को विकसित करने का उन्होंने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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