SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय औरंगजेब ने उन्हें दरबार में भी बुलाया था। किंवदंती तो यह है कि बादशाह ने जो दो अहदी भेजे थे, उनके आने के पहले ही औरंगजेब के पास पहुँचकर मलूकदास ने उसे आश्चर्य में डाल दिया था। कहते हैं कि मलूकदास ही के कहने से औरंगजेब ने कड़ा पर से जज़िया उठा दिया था। फतहखाँ नामक औरंगजेब का एक कर्मचारी उनका बड़ा भक्त हो गया। और नौकरी छोड़कर उन्हीं के साथ रहने लगा। मलूकदास ने उसका नाम मीरमाधव रखा । दोनों गुरु-शिष्य जीवन में एक होकर रहे और मृत्यु में भी वे एक हो रहे हैं। कड़ा में उन दोनों की समाधियाँ आमने-सामने खड़ी होकर उनके इस अनन्य प्रेम का साक्ष्य दे रही हैं। मालूम होता है कि मलूकदास ने कई ग्रंथों की रचना की है। लाला सीताराम ने इनके रत्नखान और ज्ञानबोध का उल्लेख किया है और विल्सन साहब ने साखी, विष्णुपद और दशरतन का। इनके स्थान पर इनका सबसे उत्तम ग्रंथ भक्तिवच्छावली माना जाता है। किंतु इनके ये ग्रंथ हमारे लिये नाम ही नाम हैं। हमें तो इनकी उन्हीं कविताओं से संतोष करना पड़ा है जो लाला सीतारामजी के संग्रह में दी गई हैं अथवा जो बेल्वेडियर प्रेस ने मलकदास की बानी के नाम से छापी हैं। इनकी रचनाओं में विचारों की पूर्ण उदारता तथा स्वतंत्रता झलकती है। गीता के लिये इनके हृदय में बड़ा भारी सम्मान था। राम नाम की भी इन्होंने बड़ी महिमा गाई है। परंतु इनके राम अवतारी राम नहीं थे। मलूकदास ने उक्तियाँ भी बहुत अच्छी अच्छी कही हैं। कबीर के नाम से यह दोहा प्रसिद्ध है चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय । दोउ पाटन के बीच में, साबित रहा न कोय ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy