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________________ ८० नागरीप्रचारिणी पत्रिका भी इनकी एक समाधि बतलाई जाती है, पर शायद वह किसी दूसरे मलूकदास की है। आचार्य श्यामसुंदरदासजी ने कबीर-ग्रंथावली की भूमिका में कबोर के एक शिष्य मलूकदास का उल्लेख किया है, जिसकी प्रसिद्ध खिचड़ी का उन्होंने वहाँ अब तक भोग लगना बताया है और कहा है कि कबीर को नीचे लिखी खाखी उन्हीं को संबोधित करके लिखी गई है— कबीर गुरु बसै बनारसी सिख समंदां तीर । बीसारचा नहि बीसरे, जे गुण होइ सरीर ॥ संभव है, पुरीवाली समाधि कबीर के शिष्य मलूक की हो । पीछे से दोनों मलूक एक ही व्यक्ति में मिल गए और लागों ने दोनों स्थानों पर समाधि की उलझन को सुलझाने के लिये वह दंतकथा गढ़ डाली जिसके अनुसार मलूकदास के इच्छानुकूल उनका शव गंगाजी में बहा दिया गया और स्थान स्थान पर संतों से भेंट करता हुआ वह, समुद्र के रास्ते, जगन्नाथ पुरी पहुँच गया । नाम मात्र की दीक्षा इन्होंने देवनाथजी से ली थी। किंतु आध्यात्मिक जीवन में उनको वस्तुतः दोक्षित करनेवाले गुरु मुरार स्वामी थे । संतवाणी-संग्रह में उनके गुरु का नाम गलती से विट्ठल द्रविड़ लिखा हुआ है । विट्ठल द्रविड़ तो उनके नाम मात्र के दीक्षागुरु देवनाथ के गुरु भाऊनाथ के गुरु थे । कहते हैं कि सिख गुरु तेगबहादुर ने कड़ा में आकर उनसे भेंट की थी । परिचयी में इस बात का उल्लेख नहीं है। हाँ, औरंगजेब द्वारा गुरु तेग के वध का उल्लेख अवश्य है । औरंगजेब बहुत कट्टर तथा असहिष्णु मुसलमान था। किंतु कहते हैं कि मलूकदास का वह भी सम्मान करता था । एक बार (१) क० ग्रं०, भूमिका, पृ० २ । ( २ ) वही, पृ० ६८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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