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नागरीप्रचारिणी पत्रिका प्राणनाथ की मृत्यु सं० १७५१ में हुई। पंचमसिंह और जीवन मस्ताने प्राणनाथ के अनन्य भक्तों में से थे। पंचमसिंह महाराज छत्रसाल का भतीजा था। उसने भक्ति, प्रेम आदि विषयों पर सवैये लिखे और जीवन मस्ताने ने पंचक दोहे।
बाबालाल मालवा के क्षत्रिय थे। इनका जन्म जहाँगीर के राजत्वकाल में हुआ था। इनके गुरु चेतन स्वामी बड़े चमत्कारी
योगी थे। उन्होंने इन्हें वेदांत की शिक्षा दी ६. बाबालाल
थी। स्वयं बाबालाल के आश्चर्यजनक चमकारों की कथाएँ प्रचलित हैं। कहते हैं, एक समय इन्हें भिक्षा में कच्चा अनाज और लकड़ी मिली। अपनी जाँघों के बीच लकड़ी जलाकर और जाँघ पर बर्तन रखकर इन्होंने भोजन को सिद्ध किया। शाहजादा दारा शिकोह बाबालाल के भक्तों में से था। बाबालाल की कोई हिंदी रचना नहीं मिलती, परंतु उनके सिद्धांत नादिन्निकात नामक एक फारसी ग्रंथ में सुरक्षित हैं। सं० १७०५ में शाहजादा दारा शिकोह ने इस संत के उपदेश श्रवण करने के लिये सात बार इसका सत्संग किया था। इस सत्संग में जिज्ञासु दारा शिकोह के प्रश्नों के बाबालाल ने जो जो उत्तर दिए, वे सब नादिनिकात में संगृहीत हैं। इन्होंने सूफियों की कविवाओं का भी अध्ययन किया था। मौलाना रूम के वचनों को इन्होंने स्थान-स्थान पर अपने मत की पुष्टि में उद्धृत किया है। सरहिंद के पास देहनपुर में बाबालाल ने मठ और मंदिर बनवाए थे, जो अब तक विद्यमान हैं। इनके अनुयायो बाबालाजी कहलाते हैं।
बाबा मलूकदास सच्ची लगन के उन थोड़े से संवों में से थे जिन्होंने सत्य की खोज के लिये अपने ही हृदय को क्षेत्र माना किंतु
(१) विल्सन-रिलिजस सेक्टस प्राव दि हिंदूज', पृ० ३४७-४८ ।
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