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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय
प्राण
अवतरण दिए गए हैं, उन्हीं से हमें संतोष करना पड़ता है । नाथ विवाहित थे । उनकी स्त्री भी कविता करती थी । पदावली इस दंपति की संयुक्त-रचना है ।
प्राणनाथ बहु-भाषा - विज्ञ थे । जहाँ जाते वहीं की भाषा सीख लेते थे । उनके कलजमे शरीफ की सोलह किताबों में से कुछ गुजराती में हैं, कुछ उर्दू में, कुछ सिंधी में और अधिकांश हिंदी में । हाँ, उनकी भाषा प्रत्येक दशा में ऊबड़-खाबड़ और खिचड़ी है । अरबी, फारसी तथा संस्कृत का भी उन्हें ज्ञान मालूम पड़ता है ।
प्राणनाथ बहुत पहुँचे हुए साधु समझे जाते थे । यहाँ तक कहा जाता है कि उन्होंने महाराज छत्रसाल के लिये हीरे की एक खान का पता लगाया था । मैं तो समझता हूँ कि वह खान भगवद्भक्ति थी । उन्होंने एक नवीन पंथ का प्रवर्तन किया जो धामी पंथ कहलाता है और भगवान् के धाम की प्राप्ति जिसका प्रधान उद्देश्य है । इस पंथ के द्वारा उन्होंने प्रेम-पंथ का प्रचार किया जिसमें केवल हिंदू और मुसलमान ही नहीं, ईसाई भी एक हो सकें। अपने को तो वे मेहदी. मसीहा और कल्कि अवतार तीनों एक साथ समझते थे । राधा और कृष्ण के प्रेम के रूप में उन्होंने भगवान् और भक्त के प्रेम के गीत गाए ! मुहम्मद उनके लिये परमात्मा का प्रेमी था उनके अनुसार प्रेम परमात्मा का पूर्ण रूप था और विश्य उसका एक अंश मात्र' । उन्होंने मांस, मदिरा और जाति का पूर्ण रूप से निषेध कर दिया। काठियावाड़ और बुंदेलखंड में उनके भक्त बहुत पाए जाते हैं; किंतु वे नाम मात्र के लिये धामी हैं । हिंदू धर्म की सब प्रथाओं का वे पूरी तरह आचरण करते हैं ।
( १ ) अब कहूँ इसक बात, इसक सबदात्तीय साख्यात... ब्रह्मदृष्टि ब्रह्म एक श्रंग, ये सदा श्रनंद अति रंग ॥
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- ब्रह्मबानी, पृ० १
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