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नागरीप्रचारिणी पत्रिका वह दादू की मूल शिक्षाओं की रक्षा किए हुए है। उत्तराधी नाम की भी उनको एक शाखा और होती है जिसके संस्थापक बनवारी थे। ___ दादूपंथी न तो मुर्दो को गाड़ते हैं, न जलाते; वे उन्हें योंही जंगल में फेंक देते हैं जिससे वह पशु-पक्षियों के कुछ काम आवे ।
प्राणनाथ जाति के क्षत्रिय थे और रहनेवाले काठियावाड़ के। उनका जन्म सं० १६७५ में हुआ था। सिंध, गुजरात और महा.
राष्ट्र में भ्रमण करने के बाद वे पन्ना में बस ५. प्राणनाथ
गए जहाँ महाराज छत्रसाल ने उनका शिष्यत्व स्वीकार किया। जान पड़ता है कि उन्हें मुसलमान ईसाई सभी प्रकार के साधु-संतों का सत्संग लाभ हुआ था। उनकी रचनाओं से मालूम होता है उन्हें कुरान, इंजील, तारेत आदि धर्म-पुस्तकों का ज्ञान था। फारसी लिपि में लिखा हुआ उनका एक ग्रंथ लखनऊ की प्रासफुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी में है जिसका नाम कलजमेशरीफ है। कलजमेशरीफ का अर्थ है मुक्ति की पवित्र धारा । यह हिंदी में बिगड़कर कुलजमस्वरूप हो गया है। इस ग्रंथ का कुछ अंश उनके मुख्य निवास स्थान पन्ना में सुरक्षित है। इंपीरियल गजेटियर प्रॉव इंडिया में उनके महातरियाल नाम के एक ग्रंथ की सूचना प्रकाशित हुई थी, जो मालूम होता है कि, कलजमेशरीफ से भिन्न नहीं है। इसके अतिरिक्त उन्होंने, प्रगटबानी, ब्रह्मबानो, बीस गिरोहों का बाब, बीस गिरोहों की हकीकत, कीर्तन, प्रेमपहेली, तारतम्य और राजविनोद, ये ग्रंथ भी लिखे जो अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं। नागरी-प्रचारिणी सभा की खोज-रिपोर्टोर में इन ग्रंथों से जो
(१) भाग १६, पृ. ४०४ ।
(२) १९२४ से २६ तक की रिपोर्ट और दिल्ली में खोज की अप्रकाशित रिपोर्ट।
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