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________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय जीवनदास उसे काशी ले आया, जहां उसने अठारह वर्ष तक व्याकरण, दर्शन और धर्मशास्त्र की शिक्षा पाई। निर्गुण-संतों में वही एक व्यक्ति है जिसे पाथो-पत्रों की शिक्षा मिली थी। उपर्युक्त जगजीवनदास नारनौल के उस सतनामी संप्रदाय का संस्थापक जान पड़ता है जिसके अनुयायियों ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह खड़ा किया और जिन्हें उसकी सेना ने सं० १७२६ (१६७२ ई.) में समूल नष्ट कर दिया । दादू का प्रधान शिष्य और उत्तराधिकारी उन्हीं का पुत्र गरीबदास था। उनके दूसरे पुत्र का नाम मिस्कीनदास था। उनके प्राय: सब शिष्य कवि थे। छोटे सुंदरदास ने ज्ञानसमुद्र, सुंदरविलास, ये दो मुख्य ग्रंथ लिखे। उनकी साखियों और पदों की भी संख्या काफी है। सुंदरदास के उपर्युक्त ग्रंथों के अतिरिक्त पौड़ी हस्तलेख में गरीबदास. रज्जवदास, हरदास, जनगोपाल, चित्रदास, बखना, बनवारी, जगजीवन, छीतम और विसनदास की रचनाएँ संगृहीत हैं। इनमें से रजबजी मुसलमान थे। उन्होंने सवंगी ( सींगी ) नामक एक अत्यंत उपयोगी बृहत् संग्रह बनाया जिसमें निर्गुण संत-मतानुकूल कविताएँ संगृहीत हैं, चाहे उनके रचयिता निर्गुणी हो या न हो । स्वयं रज्जबदास ने भी सवैये अच्छे कहे हैं। ___ दादू पंथो साधुओं की दो प्रधान शाखाएँ हैं। एक भेषधारी विरक्त और दूसरे नागा। भेषधारी साधु संन्यासियों की तरह भगवा धारण करते हैं और नागा श्वेत वस्त्र धारण करते हैं तथा साधारण गृहस्थों की तरह रहते हैं। दोनों प्रकार के साधु ब्याह नहीं कर सकते, चेला बनाकर अपनी परंपरा चलाते हैं । नागा लोग जयपुर राज्य की सेना में अधिक संख्या में पाए जाते हैं। नराना में इनका जो शिष्य-समुदाय है, वह 'खालसा' कहलाता है ; क्योंकि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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