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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय
७३ राजपूताना और पंजाब में उपदेश का कार्य किया। दादू का गुरु कौन था, इस विषय में बड़ा वाद-विवाद चला है। जनश्रुति तो यह
है कि परमात्मा ने ही बुड्ढा के रूप में उन्हें ४. दाद
. दीक्षित किया था। दादू ने एक साखी में स्वयं ही यह बात कही है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि बूढ़ा रक्तमांस का आदमी नहीं था। क्योंकि निर्गुण पंथ में गुरु साक्षात् परमात्मा माना जाता है। म० म० पं० सुधाकर द्विवेदी का मत है कि दादू का गुरु कबीर का पुत्र कमाल था। परंतु ऐतिहासिक दृष्टि से यह ठोक नहीं जान पड़ता। दादू ने स्थान स्थान पर कबीर का उल्लेख बड़े आदर के साथ किया है जिससे प्रकट होता है कि वह उनको उपदेष्टा गुरु से भी बढ़कर समझते थे, यहाँ तक कि साक्षात् परमात्मा मानते थे। दादु की वाणी विचारशैली, साहित्यिक प्रणाली
और विषय-विभाजन सबकी दृष्टि से कबीर की वाणी का अनुगमन करती है। यह इस बात का दृढ़ प्रमाण है कि किसी ने उन्हें कबोर की वाणी की शिक्षा दी थी। बोधसागर के अनुसार कमाल ने अपने पिता के सिद्धांतों का प्रचार अहमदाबाद आदि स्थानों में किया था' । अतएव अहमदाबाद का यह संत यदि कमाल का नहीं तो कमाल की शिष्य-परंपरा में किसी का शिष्य अवश्य था । डा० विल्सन के मत से कमाल की शिष्य-परंपरा में दादू से पहले जमाल, विमल और बुड्ढा हो गए थे। इसमें संदेह नहीं कि आज तक जितने बाह्य और प्राभ्यंतर प्रमाण उपलब्ध हुए हैं वे सब इस मत की पुष्टि करते हैं।
दादू जाति के धुनिया थे । उन्होंने अपना अधिक समय मामेर में बिताया। वहाँ से वे राजपूताना, पंजाब आदि स्थानों में भ्रमण (१) चले कमाल तब सीस नवाई । अहमदाबाद तब पहुँचे भाई ॥
-'बोधसागर', पृ० १५११, (२) धूनी गम उतपन्यो दादू योगेंद्रो महामुनी।
-'सींगी' पौड़ी हस्तलेख, पृ० ३७३ ।
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