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नागरीप्रचारिणी पत्रिका उनके प्राण छूट गए। प्रत्येक नवीन गुरु को प्रात्मरक्षा की अधिकाधिक आवश्यकता का अनुभव हुआ। नवम गुरु तेगबहादुर को औरंगजेब ने बड़ी क्रूरता के साथ मरवाया। वध-स्थान में गुरु तेगबहादुर ने, पश्चिम से आनेवाले विदेशियों के द्वारा, मुगलशासन के नाश की भविष्यवाणी की जो अँगरेजों पर ठोक उतरी। सिखों ने इन अत्याचारों का बदला लेने का पूरा यत्न किया । छठे गुरु हरगोविंद के हाथों शाही सेना को गहरी हार खानी पड़ी थी। दशम गुरु गोविंदसिंह ने और भी महान् फल के लिये प्रयत्न प्रारंभ किया। उन्होंने अपने सिखों में से साहसी वीरों को चुन चुनकर खालसा का संगठन किया, तमाखू और मदिरा का व्यवहार निषिद्ध कर दिया और केश, कंघा, कटार, कच और कड़े इन पाँच 'क'-कारों के व्यवहार का आदेश किया और राक्षस-मर्दिनी भगवती रण- चंडी का आवाहन किया। उन्होंने गुरुओं की परंपरा का अंत कर दिया और उनके स्थान पर ग्रंथ को पूज्य ठहराया, परंतु साथ ही शस्त्राखों को भी वे पूज्य समझते थे। उनमें साधु और सैनिक दोनों का एक में समन्वय हुआ। ज्ञान को भी उन्होंने वीरता के उद्दीपनों में सम्मिलित किया
धन्य जियो तेहि को जग में मुख ते हरि, चित्त में जुद्ध विचारै। देह अनित्त न नित्त रहे, जस-नाव चदै भवसागर तारै ॥ धीरज धाम बनाय इहै तन, बुद्धि सुदीपक ज्यों उजियारै। ज्ञानहि की बढ़नी मना हाथ लै, कादरता कतवार बुहारै ॥
इस प्रकार सिख-संप्रदाय सैनिक धर्म में बदल गया और भावी सिख-साम्राज्य की पकी नींव पड़ो।
नानक की मृत्यु के छः वर्ष बाद अहमदाबाद में दादू का जन्म हुआ। ये निर्गुण संत मत के बड़े पुष्ट स्तंभों में से हुए। इन्होंने
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