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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका बतला रहे हैं । अर्थात् नानक स्वतः संत थे, उन्हें गुरु धारण करने की कोई आवश्यकता न थी । ७० कबीर मंसूर से यह भी जान पड़ता है कि भाई बाला के अनुसार नानक ने बाबर से कहा था कि मैं "कलंद कबीर" का चेला हूँ जिसमें तथा परमेश्वर में कोई भेद नहीं है । यदि कबीर मंसूर में इस अवतरण में कुछ फेरफार नहीं हुआ है तो यहाँ भाई बाला भी कबीर को नानक का गुरु मानते जान पड़ते हैं जिससे जिंदा बाबा से कबीर ही अभिप्राय ठहरता है । परंतु कबीर मंसूर में 'कविमनीषी परिभूः स्वयम्भू' का, वेद में कबीर के दर्शन कराने के उद्देश्य से कबीर्मनीषी हो गया है । इससे निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । कबीर पंथी लोग भी नानक को कबीर का चेला मानते हैं । बिशप वेस्कट ने २७ वर्ष की अवस्था में नानक का कबीर से मिलना माना है । किंतु कबीर का जो समय पीछे निश्चित किया जा चुका है, उसके अनुसार यह ठीक नहीं जँचता । अतएव यदि जिंदा बाबा परमात्मा का नाम न होकर किसी साधु का नाम है तो वह साधु कबीर न होकर कोई दूसरा होगा । यदि कबीर ही नानक के गुरु तो, उसी अर्थ में हो सकते हैं जिस अर्थ में वे सं० १७६४ के श्रास-पास गरीबदास के गुरु हुए थे । इसका इतना ही अर्थ निकलता है कि नानक कबीर के मतानुयायी थे और उनकी वाणी से उनको अध्यात्म मार्ग में बहुत प्रोत्साहन मिला था। आदि ग्रंथ इस बात का साक्षी है कि यह बात सर्वथा सत्य है । गुरु नानक ने सं० १५-८५ ( १५३८ ई० ) में अपना चोला छोड़ा । उनका मत सिखमत अथवा शिष्यमत कहलाया । उनके बाद एक एक करके नौ और गुरु उनकी गहो पर बैठे; गुरु अंगद ( १ ) जनमसाखी, पृ० ३६६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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