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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय नानक का गुरु कौन था, इसका ठीक ठोक पता नहीं चलता। संतबानी-संपादक के अनुसार नारद मुनि उनके गुरु थे। कबीर मंसूर में भाई बाला की जनम साखी से कुछ अवतरण दिए हैं जिनमें नानक के गुरु का नाम “ज़िंदा बाबा" लिखा है। जिंदा का अर्थ मुक्त पुरुष होता है। परमार्थत: केवल परमात्मा ही जिंदा बाबा है। कबीर-ग्रंथावली में यह शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है-“कहै कबीर हमारै गोव्यंद। चौथे पद में जन का ज्यंदा ।" विहारी दरिया ने भी इससे यही अभिप्राय माना है
अछै वृच्छ श्रोह पुरुष हहि जिंदा अजर अमान ।
मुनिवर थाके पंडिता, वेद कहहि अनुमान ॥ किंतु ज्ञान प्राप्त हो जाने पर प्रत्येक संत मुक्त पुरुष (जीवन्मुक्त) हो जाता है और जिंदा कहा सकता है। कई हिंदू साधु भी अपने को जिंदा फकीर कहा करते थे। कबीर पंथ की छत्तीसगढ़ी शाखावाले कबीर को भी जिंदा फकीर कहते हैं।
बाबा जिंदा के संबंध में भाई बाला ने नानक से कहलाया है "जित्थे तोड़ी पवन और जल है, सब उसदे बचन बिच चलते हैं।" जिंदा बाबा के गुरुत्व के संबंध में व्याख्या करते हुए एक मुगल फकीर के प्रति भाईजी ने नानक से कहलाया है-"यक खुदाय पीर शुदी कुल आलम मुरीद शुदी”४ । इन स्थलों से तो यही जान पड़ता है कि उनमें जिंद का अर्थ परमात्मा ही किया गया है। उनमें नानक अपने गुरु को परमात्मा नहीं बल्कि परमात्मा को अपना गुरु
(१) क० प्र०, पृ० २१० । (२) सं० बा० सं०, भाग १, पृ० १२३ । (३) जनमसाखी, पृ० ३६६ । (४) वही, पृ० ३४६ ।
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