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नागरीप्रचारिणो पत्रिका बात को कोई अस्वीकार नहीं कर सकता कि नानक की विचारशैली को ढालने में इस्लाम का भी प्रकारांतर से हाथ रहा है।
नानक बहुत ऊँची लगन के भक्त थे। पाषंड से सदा अलग रहते थे। दिखलाने भर के पूजा-पाठ और नमाज-इबादत में उनका विश्वास न था। जब नौकरी ही में थे तभी उन्होंने नवाब
और काज़ी से कह दिया था कि ऐसी नमाज से फायदा ही क्या जिसमें नवाब घोड़ा खरीदने के और काज़ी घोड़े के बच्चे की रक्षा करने के खयाल को दूर न कर सकें। वे दया, न्याय और समता का प्रसार देखना चाहते थे। अन्याय की खोर-खाँड़ में उन्हें खून की और मेहनत की रूखी-सूखी रोटी में दूध की धार दिखलाई देती थी। साहूकार के घर ब्रह्मभोज का निमंत्रण अस्वीकार कर उन्होंने लाल बढ़ई की ज्वार की रोटो बड़े प्रेम से खाई थी। सं० १५८३ (१५२६ ई०) में बाबर ने सय्यदपुर को तहस-नहस करके एक घोर हत्याकांड उपस्थित कर दिया था, जिसे नानक ने खुद अपनी आँखों से देखा था। नानक भी उस समय बंदी बनाए गए थे। उस समय बाबर को उन्होंने न्यायी होने, विजित शत्र के साथ दया दिखलाने
और सच्चे भाव से परमात्मा की भक्ति करने का उपदेश दिया था। शासकों के अत्याचार की उन्होंने घोर निंदा की। उन्हें वे बूचड़ कहते थे। उनका अत्याचार देखकर शांति के उपासक नानक ने भी 'खून के सोहिले' गाए और भविष्यवाणी की कि चाहे काया रूपी वन टुकड़े टुकड़े हो जायँ फिर भी समय भायगा जब और मदों के बच्चे पैदा होंगे और हिंदुस्तान अपना बोल सँभाजेगा ।
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(१) काया कपड़ टुक टुक होसी हिंदुसतान संभालसि बोला।
श्रानि अठतरै जानि सतानवै, होरि भी उठसि मरद का चेला । सच की बाणी नानक श्राखै, सचु सुणाइसि सच की बेला ।
-'ग्रंथ', पृ० ३८६ ।
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