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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय एक प्रपंच से हटकर दूसरे प्रपंच में जा पड़ें। हिंदू धर्म में ही नहीं, इस्लाम में भी पाखंड और प्रपंच भरा हुआ था । आध्यात्मिक प्रेरणा के बिना प्रत्येक धर्म प्रपंच और पापंड है। जो बातें हिंदू धर्म को सार्वभौम धर्म के स्थान से गिरा रही थीं उन बातों को हटाकर नानक ने फिर से शुद्ध धर्म का प्रचार किया । वह सार्वभौम धर्म, नानक जिसके प्रतिनिधि हैं, किसी धर्म का विरोधी नहीं, क्योंकि शुद्ध रूप में सभी धर्मो को उसके अंतर्गत स्थान है, वह धर्म धर्म के भेद को नहीं मानता । फिर भी परिणामतः उनको मध्ययुग का पंजाबी राममोहन राय समझना चाहिए । उन्होंने इस्लाम की बढ़ती हुई बाढ़ से हिंदू धर्म की उसी प्रकार रक्षा की जिस प्रकार राममोहन राय ने ईसाइयत की बाढ़ से । डा० ट्रंप चाहे अच्छे अनुवादक न हों परंतु उन्होंने नानक के संबंध में अपना जो मत दिया है वह बहुत सयुक्तिक है । मिस्टर फ्रेडरिक पिंकट ने उसके निराकरण का व्यर्थ प्रयत्न किया है । डा० ट्रंप ने लिखा है - " नानक की विचारशैली अंत तक पूर्ण रूप से हिंदू विचार शैली रही । मुसलमानों से भी उनका संसर्ग रहा और बहुत से मुसलमान उनके शिष्य भी हुए। परंतु इसका कारण यह है कि ये सब मुसलमान सूफी मत के माननेवाले थे 1 और सुफा मत सीधे हिंदू मत से निकले हुए सर्वात्मवाद को छोड़कर और कुछ नहीं, इस्लाम से उसका केवल बाहरी संबंध है ।" जो नानक को मुसलमान मानने में मिस्टर पिंकट का साथ देते हैं वे उसी तरह भूल करते हैं जैसे वे लोग जो राममोहन राय को ईसाई मानते हैं। हाँ, इस
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( १ ) डिक्शनरी आँव इस्लाम में सिख संप्रदाय पर मिस्टर पिंकट का लेख |
(२) ट्रंप - ' आदि ग्रंथ' का अँगरेज़ी अनुवाद, प्रस्तावना, पृ० १०१ ।
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