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________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय खुल गई थी। उसने देखा कि संसार में मिथ्या का राज्य है। अतएव मिथ्या के विरुद्ध उसने लड़ाई छेड़ दी। किंवदंतियों के अनुसार वह दिग्विजय करते हुए मका से आसाम और काश्मीर से सिंहल तक कई स्थानों में पहुँचा। उसका स्वामिभक्त सेवक मरदाना, जहाँ जहाँ वह गया वहाँ वहाँ, छाया की तरह उसके साथ गया । उनका सबसे अधिक प्रभाव पंजाब प्रांत में रहा जो उस समय इस्लाम का गढ़ था। नानक को यह देखकर बड़ा दुःख होता था कि मिथ्या और पाषंड का जोर बढ़ रहा है। “शास्त्र और वेद कोई नहीं मानता। सब अपनी अपनी पूजा करते हैं। तुरको का मत उनके कानों और हृदय में समा रहा है। लोगों की जूठन तो खाते हैं और चौका देकर पवित्र होते हैं देखों यह हिंदुओं की दशा है । एक हिंदू चुंगीवाले से उसने कहा था-गो ब्राह्मण का तो तुम कर लेते हो। गोबर तुम्हें नहीं तार सकता। धोवीटीका लगाए रहते हो, माला जपते हो पर अन्न खाते हो म्लेच्छ का। भीतर तो पूजा-पाठ करते हो किंतु तुरको के सामने कुरान पढ़ते हो। अरे भाई ! इस पाषंड को छोड़ दो और भगवान् का नाम लो जिससे तुम तर जाप्रोगे ।" (१) सासतु वेद न माने कोई । पापो श्रापै पूजा होई ॥ तुरक मंत्र कनि रिदै समाई । लोकमुहावहि छोडी खाई ॥ चौका देके सुच्चा होई । ऐसा हिंदू वेखहु कोई ॥ -श्रादि ग्रंथ, पृ० १३८ । (२) गऊ बिरामण का कर लावहु, गोबर तरणु न जाई । धोती टीका तै जपमालो, धानु मलेच्छी खाई ॥ अंतरिपूजा, पढ़हि कतेना संजमि तुरुका भाई । छोडिले पखंडा, नामि लइए जाहि तरंदा । -'ग्रंथ', पृ० २५५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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