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________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय सकता है। जो हो, इसमें तो संदेह नहीं कि बुढ़ापे में कबीर के लिये काशी में रहना लोगों ने कुछ दूभर कर दिया था। इससे तंग आकर वे मगहर चले गए। किसी के आदेश से वे मगहर नहीं आए थे, इसका पता आदि ग्रंथ में के एक पद से चलता है। कभी कभी फिर काशी जाने के लिये उनका मन मचल उठता था । लोग भी, खास करके उनके हिंदृ शिष्य, मोचदा पुरी का यश गाकर उन्हें काशीवास करने को कहते होंगे। परंतु वे अंधविश्वासों को कब माननेवाले थे, जन्म भर की लड़ाई को अंतिम घड़ी ही में कैसे छोड़ देते ? उन्होंने कहा--'हृदय का क्रूर यदि काशी में मरे तो भी उसे मुक्ति नहीं मिल सकती और यदि हरिभक्त मगहर में भी मरे तो भी यम के दूत उसके पास नहीं फटक सकवे२ । काशी में शरीर त्यागने से लोगों को भ्रम होगा कि काशीवास से ही कबीर की मुक्ति हुई है। मैं नरक भले ही चला जाऊँ पर भगवान् के चरणों का यश काशो को न दूंगा।' इसलिये राम का स्मरण करते करते उन्होंने मगहर में शरीरत्याग किया। वहाँ उनकी (१) जिउँ जल छोडि बाहिर भइ मीना... तजिले बनारस मति भइ थोरी। -ग्रंथ, १७६, १५। (२) हिरहे कठोर मरथा बनारसी, नरक न वंच्या जाई । हरि का दास मरे मगहर, सेना सकल तिराई ॥ -क. ग्रं॰, पृ० २२४. ३५५ । (३) जो कासी तन तजै कबीर, रामहि कहा निहोरा। -वही, पृ० २३१, ४०२ । चरन विरद कासीहि न दैहूँ। कहै कबीर भल नरके जैहूँ। -वही, पृ० १८५, २६० । (५) मुभा रमत श्रीरामैं । -ग्रंथ, पृ० १७६, १५। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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