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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका था। पिता की मृत्यु पर उसने भी अपने पिता के मार्ग का अनुसरण किया और वह अहमदाबाद की तरफ उनके सिद्धांतों का प्रचार करता रहा। कबीर ने सत्य के शोध में अपना जीवन व्यतीत किया था। अज्ञान के विरुद्ध उन्होंने घोर युद्ध किया था। हिंदू मुसलमान दोनों पर उन्होंने व्यंग्यों की बाण-वर्षा की, जिससे दोनों तिलमिला उठे । सुलतान के दरबार में उनकी शिकायतें पहुंची। 'राजा राम' का सेवक भला पृथ्वी के किसी शासक की क्या परवा करता ? उसने बेधड़क सुलतान का सामना किया । काजी ने दंड सुनाया। पर, कहते हैं कि हाथ-पाँव बाँधकर गंगा में डुबाने, आग में जलाने, हाथो से कुचलवाने के सब प्रयत्न निष्फल हुए। संत-परंपरा में ये कथाएँ बहुत प्रचलित हैं । परंतु जान पड़ता है कि प्रह्लाद के साथ कबोर की पूर्ण तुलना करने के लिये ये कथाएँ गढ़ी गई हैं। म्लेच्छ-कुल में पैदा होने पर भी कबीर वैष्णव हो गया था, इस दृष्टि से उसकी प्रह्लाद के साथ समानता थी ही। कबीर-यथावली में भी इनका वर्णन है, इसी से उसकी प्रामाणिकता को भी हम अभेद्य नहीं कह सकते। हाँ, अगर हम 'काजी' का अर्थ हिरण्यकश्यप का न्यायाध्यक्ष मानें और इस पद को प्रह्लाद के संबंध का मानें तो कुछ खप (१) बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूता कमाल । __ हरि का सुमिरन छोदि के ले आया घर माल ॥ -वही १०१,४।। (२)अहो मेरे गोविंद तुम्हारा जोर । काजी बकिवा हस्तीतोर ॥... तीनि बार पतियारो लीना। मन कठोर अजहुँ न पतीना ॥ -वही पृ० २१०, ३६५ ३१४. १११। गंग गोसाइनि गहिर गभीर, जजीर बांधिकर खरे हैं कबीर ।... गंगा की लहरि मेरी टूटी जंजीर, मृगछाला पर बैठे कबीर ॥ -वही, पृ०.२८०, ५०। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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