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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय
५३ हिम काशी में प्रकट भए हैं, रामानंद चेताये। कबीर की मानी जानेवाली इस उक्ति का भी यह अर्थ नहीं कि रामानंद ने कबोर को जगाया बल्कि यह कि कबीर ने रामानंद को जगाया। परंतु यह मान लेने पर भी, यह कोई नहीं कह सकता कि यह रामानंद को कबोर का गुरु मानने में बाधक है। गोरखनाथ ने मछंदरनाथ को जगाया किंतु यह कोई नहीं कहता कि गोरखनाथ मछंदरनाथ के चेने नहीं थे। असल में यह वचन यही बतलाने के लिये गढ़ा गया है कि रामानंद के चेले होने पर भी कबीर उनसे बड़े थे। परंतु स्वतः कबीर ने अपने आपको अपने गुरु से बढ़ाने का प्रयत्न नहीं किया और रामानंद की मृत्यु का उल्लेख करते हुए बीजक के एक पद में बड़े उत्साह से उन्होंने उनकी महिमा गाई है
अापन असर किए बहुतेरा । काहु न मरम पाव हरि केरा॥ इंद्री कहीं करै बिसरामा । (सो) कहाँ गए जो कहत हुते' रामा ॥ सो कहां गए जो होत सयाना । होय मृतक वहि पदहि समाना ।
रामानंद रामरस माते । कहहिं कबीर हम कहि कहि थाके ॥ कबीर कहते हैं कि उन हरि का भेद कोई नहीं जानता, जिन्होंने बहुतों को अपने समान कर दिया है। [लोग समझते हैं कि रामानंद वैसे ही मर गए जैसे और मनुष्य मर जाते हैं, इसी से पूछा करते हैं-] उनकी इंद्रियाँ कहाँ विश्राम कर रही हैं ? उनका 'राम' 'राम' कहनेवाला जीवात्मा कहाँ गया ? [ कबीर का उत्तर है कि ] वह मरकर परम पद में समा गया है। [क्योंकि ] रामानंद राम
(१)क. श०, भाग २, पृ० ६१ । (२) कुछ प्रत्तियों में 'अपन पास किजे', पाठ भी मिलता है। (३) होते। (४) 'बीजक' । पद ७७ ।
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