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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
नाथ, भतृहरि, गोपीचंद आदि योगियों ने किया था' । अधकचरे जोगियों को उन्होंने कहा है कि वे जटा बाँध बाँधकर मर गए पर उन्हें सिद्धि न प्राप्त हुई । इन सब बातों को देखते हुए मेरी प्रवृत्ति मगहर हो को उनका जन्म स्थान मानने की होती है । मालूम होता है कि इसी लिये काशी छोड़ने पर मगहर को उन्होंने अपना निवासस्थान बनाया ।
योगियों तथा साधुओं के सत्संग से जब कबीर के हृदय में विरक्ति का भाव उदय हुआ तब वे पूर्ण आध्यात्मिक जागर्ति के लिये व्याकुल हो उठे । घर में रहना उनके लिये दूभर हो गया । काम काज सब छोड़ दिया । ताना-बाना पड़े रह गए रे । संसार से उदासीन होकर जंगल छान डाले तीर्थाटन किए पर उनके मन को शांति न हुई । परमात्मा के दर्शन करा देनेवाला कोई समर्थ साधु उन्हें मिला नहीं । हाँ, ऐसे
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बहुत मिले जिनमें
( १ ) ता मन का कोइ जानै भेव । रंचक लीन भया सुषदेव ॥ गोरष भरथरि गोपीचंदा । ता मन सों मिलि करें अनंदा ॥ क० प्र०, पृ० १६, ३३ । कामिनि अँग विरकत भया रत्त भया हरि नाई । साषी गोरवनाथ ज्यू, श्रमर भए कलि माई ॥
वही, पृ० ५१, १२ ( २ ) जटा बाँधि बाँधि जोगी म्ए, इनमें किनहु न पाई ।
- वही, पृ० १२२, ३१७ । (३) तनना बुनना तन तज्या कबीर, राम नाम लिख लिया सरीर । वही, पृ० ३५, २१ । ( ४ ) जाति जुलाहा नाम कबीरा, बन बन फिरौं उदासी । -- वही, पृ० १८१, २७०
( ५ ) वृंदावन दूँढ्यौं, दूँ क्यों हो जमुना को तीर । राम मिलन के कारने जन खोजत फिरै कबीर ॥
- 'पौड़ी हस्तलेख', पृ० १६४ (अ)
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