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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय का दर्शन भी प्राप्त हुआ था। अधिक संभव यह है कि कबीर का जन्म मगहर ही में हुआ हो, जो आज भी प्रधानतया जुलाहों की बस्ती है। गोरखनाथजी का प्रधान स्थान गोरखपुर मगहर के बिलकुल नजदीक है। जिस जमाने में रेल नहीं थी उसमें योगियों का गोरखपुर प्राते-जाते मगहर में ठहर जाना असंभव नहीं। यहीं से कबीर पर हिंदू भावों और योगमूलक विरक्ति का प्रारंभ हो जाता है। जान पड़ता है कि कबीर को योग की बातों का ज्ञान गोरखपंथी योगियों से ही हुआ था। योगाभ्यास के द्वारा उनको परमात्मा की झलक तो मिल गई थी परंतु वे किसी ऐसे पहुँचे योगी के पल्ले न पड़े जो उनको पूर्णानुभूति की दशा तक पहुँचा देता। उनके ग्रंथो में हम गोरखनाथ की तो भूरि भूरि प्रशंसा पाते हैं किंतु अधकचरे गोरखपंथियों की निंदा। माया के वास्तविक स्वरूप को गोरखनाथ अच्छी तरह जानते थे, इसी से वे उसको लक्ष्मण की भाँति त्याग सके थे । नारी से विरक्त होकर वे अमर हो गए थे। कलिकाल में गोरखनाथ ऐसा भक्त हुआ कि माया में पड़े हुए अपने गुरु से उसने राज्य छुड़वा दिया । जिस प्रानंद का सुखदेव भी बहुत थोड़ा ही सा उपभोग कर सके थे, उसका पूर्णापभोग गोरख
मेकांलिफ ने गलती से दूसरी पंक्ति का अर्थ किया है 'पहले मैंने काशी में दर्शन पाए और फिर मगहर में प्राकर बसा', जो प्रसंग के प्रतिकूल है और स्पष्ट ही गलत है। (१) राम गुन बेलड़ी रे अवधू गोरषनाथि जाणी ।
-क. ग्रं॰, पृ० १४२, १६३ । विरगुण सगुण नारी संसारि पियारी, लखमणि त्यागी, गोरषि निवारी।
-वही, पृ० १६६, २३२ । (२) गोरखनाथ न मुद्रा पहरी मस्तक हू न मुंडाया। ऐसा भगत भया कलि अपर गुरु पै राज छुड़ाया ।
-वही, पृ० १८१, २३८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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