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________________ नागरीप्रचारिणो पत्रिका जुलाहा' हूँ। सचमुच काशो में किस जिज्ञासु को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो जाती ? आदि ग्रंथ में के एक पद में उन्होंने कहा है कि सारा जीवन मैंने काशो ही में बिताया है। अतएव इस बात में संदेह नहीं कि कबीर के जीवन का बड़ा भाग काशी में व्यतीत हुआ था। परंतु क्या इससे यह भी मान लिया जाय कि पैदा भी वे काशी ही में हुए थे? यह असंभव नहीं; हिंदू भावों से ओत-प्रोत उनकी विचार-धारा भी इस बात की ओर संकेत करती है कि उनका बाल्यकाल काशो-सदृश किसी हिंदू नगरी में हिंदू वातावरण में व्यतीत हुआ था। आदि य य में के एक पद से मालूम होता है कि उनके विचार ही नहीं, प्राचार भी प्रारंभ हो से हिंदू साँचे में ढल गए थे। 'राम राम' की रट नित्य नई कोरी गगरी में भोजन बनाना, चौका-पोतवाना, उनकी इन सब बातों से उनकी अम्मा तंग आ गई थी । परंतु आदि ग्रंथ के एक पद में कबीर कहते हैं कि मगहर भी कोई मामूली जगह नहीं, यहीं तुमने मुझे दर्शन दिए थे। काशी में तो मैं बाद में जाकर बसा। इसी से फिर तुम्हारे भरोसे मगहर बस गया हूँ । इससे जान पड़ता है कि काशी में बसने के पहले वह केवल मगहर में रहते ही नहीं थे, वहीं उन्हें पहले पहल परमात्मा (१) देखो पृष्ठ ४४ की टिप्पणी (१)। (२) सकल जनम सिवपुरी गंवाया-'प्रथ', पृ० १७६, १९ । (३) मित उठि कोरी गगरी पान लीपत जीउ गयो। ताना बाना कछु न सूझै हरि रसि लपठ्यो । हमरे कुल कउने रामु कहो।। -वही, पृ० ४६२.४। (४) तेरे भरोसे मगहर बसियो, मेरे तन की तपनि बुझाई । पहले दरसन मगहर पायो, फुनि कासी बसे आई ॥ -वही, पृ० ५२३, क० प्र०, पृ. २६६,. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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