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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय
४५ प्रसिद्ध हो गया' । पदकर्ता का अभिप्राय यह है कि भक्ति के लिये कुल की उच्चता कदापि मावश्यक नहीं। इससे प्रकट होता है कि कबीर मुसलमान कुल में केवल पाले-पोसे ही नहीं गए थे, पैदा भी हुए थे । पोपा और रैदास दोन कबीर के समकालीन
और गुरुभाई थे। इसलिये कबीर के कुल के संबंध में जो कुछ उनमें से कोई कहे, उस पर विश्वास करना चाहिए ।
जनश्रुति के अनुसार कबीर के पोष्य पिता का नाम नीरू अथवा नूरुद्दीन था और माता का नीमा जिन्हें उसके वास्तविक माता-पिता के ही नाम समझना चाहिए । ___ जनश्रुति ही के अनुसार कबीर का जन्म काशी में हुआ था
और निधन मगहर में। इस बात में तो संदेह नहीं कि कबीर उस प्रांत के थे जहाँ पूरबी बोली जाती है, क्योंकि उन्होंने स्वयं कहा है कि मेरी बोली 'पूरबी' है, जिसे कोई नहीं समझ सकता; उसे वही समझ सकता है जो ठेठ पूरब का रहनेवाला हो३ । पंजाब में संगृहीत ग्रंथ साहब में भी उनकी वाणी ठेठ पूरबी है।
किसी ज्ञान-गर्वित ब्राह्मण के यह कहने पर कि 'तुम जुलाहे हो ज्ञान-वान क्या जानो ?' उन्होंने बड़े गर्व के साथ कहा था-मेरा ज्ञान नहीं पहचानते ? अगर तुम ब्राह्मण हो तो मैं भी तो 'काशी का
(१) जाके ईद बकरीद कुल गउरे बध करहि मानियहिं शेख शहीद पीरां ।
जाके वापि ऐसी करी, पूत ऐसी धरी, तिहुरे लोक परसिध कबीरा ॥
-'ग्रंथ', पृ० ६६८; 'सांगी', पौड़ी हस्तलेख पृ० ३७३, २२ । (२) इन पदों में यह स्पष्ट नहीं कहा गया है की उनके माता-पिता मुसलमान थे। संभव है, यहाँ माता-पिता से तात्पर्य पालने-पोसनेवाले माता-पिता से हो।--संपादक । (३) मेरी बोली पूरबी ताहि लखे नहिं कोय ।
मेरी बोली सो लखे धुर पूरब का होय ॥-क. ग्रं॰, पृ० ७६ पादश
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