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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
परंतु इतना होने पर भी वे सब विशेषताएँ, जिनके विकास से निर्गुण संत संप्रदाय का उदय हुआ, उनमें मूल रूप में पाई जाती हैं । जाति - पाँति के सब बंधनों को तोड़ देने की प्रवृत्ति, अद्वैतवाद, भगवदनुराग, विरक्त और शांत जीवन, बाह्य कर्मकांड से ऊपर उठने की इच्छा सब उनमें विद्यमान थी । इस प्रकार इन संतों ने कबीर के लिये रास्ता खोला जिससे इन प्रवृत्तियों को चरमावस्था तक ले जा सकना उसके लिये आसान हो गया
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८. कबीर
कबीर जुलाहा थे । अपने पदों में उन्होंने बार बार अपने जुलाहा होने की घोषणा की है। जुलाहे मुसलमान होते हैं। हिंदू जुलाहे कोरी कहलाते हैं । एक स्थान पर उन्होंने अपने को 'कोरी' भी कहा है । संभव है, 'जोलाहा' कहने से उनका अभिप्राय केवल पेशे से हो, उनके धर्म का उसमें कोई संकेत न हो । जनश्रुति के अनुसार वे जन्म से तो हिंदू थे किंतु पाले पोसे गए थे मुसलमान के घर में । परंतु इस बात का प्रमाण मिलता है कि उनका जन्म वस्तुत: मुसलमान परिवार में हुआ था । एक पद में, जो आदिग्रं य में रैदास के नाम से और रज्जबदास के सर्वांगी में पोपा के नाम से मिलता है, लिखा है कि जिसके कुल में ईद-बकरीद मनाई जाती है, गोवध होता है, शेख शहीद और पीरों की मनौती होती है, जिसके बाप ने ये सब काम किए उस पुत्र कबीर ने ऐसी धारणा धरी कि तीनों लोकों में
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(१) तू बाह्मण, मैं कासी का जुलाहा, चीन्हि न मेोर गियाना । — क० ग्रं०, पृ० १७३, २५० और उदाहरणों के लिये देखिए क० प्र०, पृ० १२८, १२४; १३१, १३४; १८१, २७० और २७१ ।
( २ ) हरि कौ नवि श्रभै पद दाता, कहै कबीरा कोरी । -क० ग्रं०, पृ० २०५, ३४६ ।
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