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________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय वर्ष भी दें तो भी रामानंद का जन्म सं० १२८८ में इतना पहले नहीं आ जाता है कि इस दृष्टि से अनुचित मालूम हो। ओड़छे के हरिराम व्यासजी के एक पद से मालूम होता है कि नामदेव और त्रिलोचन रामानंदजी से पहले स्वर्गवासी हो गए थे। त्रिलोचन का जन्म मेकॉलिफ ने सं० १३२४ (१२६७ ई० ) में माना है। त्रिलोचन कितने ही दीर्घजीवी क्यों न हुए हों, सं० १४६७ (१४१०ई०) से पहले ही अवश्य दिवंगत हो गए होंगे। नामदेव भी त्रिलोचन के समकालीन थे, यद्यपि मालूम होता है कि आयु में उनसे कुछ छोटे थे। सं० १४६७ से पहले बहुत काफी आयु भोगकर उनका भी दिवंगत होना असंभव नहीं। जनरल कनिंघम ने रामानंद के शिष्य पीपा का जो समय स्थिर किया है, वह भी इस समय के विरुद्ध नहीं जाता। इसे रामानंदजी की आयु ११० वर्ष की ठहरती है, जो उनके लिये बहुत बड़ी नहीं। यह प्रसिद्ध है कि रामानंदजी दीर्घायु हुए थे। नाभाजी ने भी कहा है बहुत काल वपु धार के प्रनत जनन को पार दियो । श्रीरामानंद रघुनाथ ज्यों, दुतिय सेतु जगतरन कियो । कबीर के परवर्ती इन संत कवियों को सगुण और निर्गुण संप्रदाय के बीच की कड़ी समझना चाहिए। उनमें सगुणवादी और निर्गुणवादी दोनों से कुछ अंतर है। न तो वे सगुणवादियों की तरह परमात्मा की निर्गुण सत्ता की अवहेलना कर उसकी प्रातिभासिक सगुण सभा को ही सब कुछ समझते हैं और न निर्गुणियों की तरह मूर्तिपूजा और अवतारवाद को समूल नष्ट ही कर देना चाहते हैं। यद्यपि अंत में वे सब बाह्य कर्मकांड का त्याग आवश्यक बतलाते हैं परंतु उनके व्यवहार से यह मालूम होता है कि वे प्रारंभिक अवस्था में उसकी उपयोगिता को स्वीकार करते थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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