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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
सुरक्षित है' । इसी काल की गंगा तथा यमुना की प्रस्तर मूर्तियाँ वंगीय साहित्य परिषद् के म्यूजियम में सुरक्षित हैं। गंगा की मूर्ति ( नं०k (b) 141 ) मुर्शिदाबाद तथा यमुना की ( नं० k (c) 1) बिहार से प्राप्त हुई है। गंगा का दूसरा नाम भागीरथी भी है; क्योंकि पौराणिक वर्णन के अनुसार भगीरथ गंगा को मृत्युलोक में ले आए थे । इस वर्णन के आधार पर भी दक्षिण भारत में गंगा की मूर्ति का निर्माण होता था । एलेफेंटा में गंगाधर शिव की एक मूर्ति मिलती है जिसमें गंगा शिव की जटा में प्रवेश करती हुई दिखाई गई है २ । इस प्रकार कतिपय ग्रंथों में गंगाधर शिव की मूर्ति का निम्न लिखित प्रकार से वर्णन मिलता है
गङ्गाधरमहं वक्ष्ये सर्व लेाकसुखावहम् ।
सुस्थितं दक्षिणं पादं वामपाद तु कुञ्चितम् ॥ विश्लिष्य स्याज्जटाबंधं वामे स्वीषनताननम् । दक्षिण पूर्वहस्ते तु वरद ं दक्षिणेन तु ॥ देवीमुपाश्रितेनैव देवीमालिङ्गय कारयेत् । दक्षिणा परहस्तेने । द्धृत्य | Sीषसीमकम् ॥ स्पृशेज्जटागतां गङ्गां वामेन मृगमुद्धरेत् । देवस्य वामपार्श्वे तु देवी विरहितानना ॥ सुस्थितं वामपादं तु कुञ्चितं दक्षिणं भवेत् । प्रसार्य दक्षिणं हस्तं वामहस्तं तु पुष्पष्टक् ॥ सर्वाभरणसंयुक्त सर्वालङ्कारसंयुक्तम् । भगीरथं दक्षिणे तु पार्श्वे मुनिवरान्वितम् ॥
- शिल्परत्न, पटल १२ ।
( १ ) मूर्ति न'. H(c) ' ( वारेंद्र सोसाइटी संग्रहालय ) ।
(२) गोपीनाथ राव — एलेमेंटस धाफ हि ंदू ग्राहकानाग्राफी, जि० २,
भा० १, प्लेट ४० ।
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