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नागरीप्रचारिणी पत्रिका मिलती हैं । गुप्तों के अन्य मंदिरों-तिगवारे तथा देवगढ़३-- में गंगा और यमुना की मकर तथा कूर्मवाहिनी मूर्तियाँ मिलती हैं। उदयगिरि गुहा की मूर्तियाँ समुद्र में प्रवेश करती हुई दिखलाई पड़ती हैं । गंगा के वाहन मकर से यही तात्पर्य है कि इसका संबंध समुद्र से है तथा यमुना के कूर्म से प्रकट होता है कि इस नदी का संबंध किसी अन्य नदी से है, समुद्र से नहीं। मथुरा में भी गंगा तथा यमुना की ऐसी ही मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। मध्यभारत के ग्वालियर में स्थित भिलसा नामक स्थान से भी मकरवाहिनी गंगा की मूर्ति मिली है जो बोस्टन के संग्रहालय में सुरक्षित है। यों तो गुप्तकालीन ऐतिहासिक स्थानों (पहाड़पुर आदि ) से गंगा तथा यमुना दोनों की मूर्तियाँ मिलो हैं, परंतु गंगा की विशेषता बढ़ती गई और समयांतर में गंगा की पूजा की ही महत्ता समझी जाने लगी। उत्तरी भारत में मकरवाहिनी देवी का कतिपय स्थलों पर गंगा नाम दिया गया है जो पहले किसी भी लेख से प्राप्त नहीं होता। काँगड़ा के वैद्यनाथ-मंदिर के लेख तथा भेड़ाघाट ( जबलपुर, मध्यप्रांत) के लेख में मकरवाहिनी देवी 'गंगा' के नाम मे उल्लिखित मिलती है। इसके
(१) बैनर्जी-मेमायर आफ आर्केला० स०, नं० १६ । (२) कनि घम-मा० स० रि०, भा० ६, पृ. ४१ ।। (३) वही, भा० १०, प्लेट ३६, और भा० १०, पृ० ६० ।
(४) कुमारस्वामी-यक्ष, भा॰ २, प्लेट २०, न.।
(५) वोजेल-कैटलाग आफ आर्केला, म्यूजियम, मथुरा, न. R. 56, 57
(६) दि एज आफ इंपोरियल गुप्त प्लेट २७ ।। (७) वाजेल-कैटखाग, पृ० ३८७ । (८) कनिघम-प्रा० स० रि०, भा० १, पृ. ६६.६।
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