________________
४८४
नागरीप्रचारिणी पत्रिका
ही कलाप्रिय भारतीयों में पुष्प की बड़ी माँग के कारण मालियों का व्यवसाय खूब चलता होगा ।
दर्पण
शृंगार में दर्पण भी एक आवश्यक स्थान की पूर्ति करता था । किस धातु से इसका निर्माण होता था इसका पता तो नहीं चलता, परंतु इतना अवश्य है कि भारतीय पुरुष और स्त्री सदा इसका व्यवहार करते थे । कालिदास ने कई स्थानों पर दर्पणों का उल्लेख किया है' । अन्य शारीरिक शृंगार समाप्त कर वे दर्पण में उसका प्रभाव देखते थे | वैवाहिक नेपथ्य के समाप्त हो जाने के बाद वर? और वधू दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखते थे । दर्पण का प्रयोग साधारण शृंगार में होता हुआ धार्मिक कार्यों में भी होने लगा था ।
इस प्रकार
कालिदास के समय का भारतीय भोजन बड़ा ही बलवर्धक था । यव, गेहूँ और चावल राष्ट्र के भोजन थे और अनंत गोधन
4
उसे दूध, मक्खन, घी और दही प्रदान करता
भोजन
था। दूध आदि से भोजन की अन्य बड़ी स्वादिष्ट वस्तुएँ तैयार की जाती थीं। चीनी से भोजन में बड़ा स्वाद आ जाता था और इससे तथा दूध से भारतीयों का अत्यंत प्रिय खीर तैयार किया जाता था चीनी कई प्रकार की होती थी । एक प्रकार की चीनी का नाम, जो हमें कालिदास से प्राप्त होता है, 'मत्स्यपिंड ' ३ था । लोगों के प्रिय फूल केवल उनके विलास की सामग्री नहीं थे वरन् उनसे मधुमक्खियाँ अनंत मधु
( १ ) प्रतिमा ददर्श । - कुमार०, ७, ३६ । विभ्रमदर्पणम् । —रघु०, १०, १० ।
( २ ) कुमार०, ७, ३६ ।
(३) मालविका०, ३, विदू० - सीधुपाने द्वे जितस्य मत्स्यपिण्डकोपनता...।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com