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________________ ४८३ भारतवर्ष की समाजिक स्थिति करना ( अभिनवा इव पत्र विशेषकाः।-रघु०६, २६; ३) अविधवाएँ अपने ललाट पर प्राय: कुंकुम ( अब सिंदूर ) अथवा कस्तूरी का श्याम टीका लगाती थीं। कुंकुम का टीका लगाकर कभी कभी अंजनबिंदु भी ललाट पर लगाती थीं । आजकल कुछ पुराने खयाल की स्त्रियाँ इसका प्रतिनिधि कप टिकली धारण करती हैं। कालिदास के समय में लोग पुष्पों का खूब व्यवहार करते थे। कालिदास के ग्रंथों में फूलों के असंख्य उल्लेख हुए हैं। उनके बिना कोई उत्सव संभव नहीं था। उत्सवपुष्प-व्यवहार दिवसों पर चारों ओर सजाने का मुख्य काम उन्हीं के द्वारा संपन्न होता था। पुरुष और स्त्रियाँ शरीर के बराबर लंबी फूलों की माला पहनती थी। बहुत से आभूषण तो फूलों की नकल करके बनाए जाते थे। एक स्थल पर स्वर्ण के स्थान पर कुसुम-मेखला का वर्णन मिलता है। युवतियाँ फूलों और केसर की पत्तियों का बालों में आभूषणों की भांति व्यवहार करती थीं। केसर के फूलों की मेखला मुक्तादाम के स्थान पर व्यवहृत होती थी और कर्णिकार के फूल कुंडल का काम देते थे। स्त्रियाँ कुंद-कलियों का बालों में, सिरस के फूलों का कानों पर, कुरबक पुष्पों का वेणियों में और वर्षा ऋतु के कुसुमों का माँग की रेखा पर प्रयोग करती थीं। फिर मंदार पुष्प को बालों में और कमल की छोटी कलियों को कानों में पहनती थीं। ऋषिकन्याएँ केवल पुष्पों के ही आभूषण पहनती थीं। इस प्रकार भारतीयों के नित्य के श्रृंगार में पुष्पों का बड़ा ऊँचा स्थान था । नदी-कूलो पर दोनों ओर यूथिका पुष्प खिलते थे जिनका मालियों की स्त्रियाँ (पुष्पलावी' ) सदा चयन करती रहती होगी। सचमुच (.) मेघदूत, २८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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